Wednesday 8 February 2012

मां करणी देवी मंदिर


मां करणी देवी मंदिर, जिसे चूहों वाला मंदिर भी कहा जाता हैबीकानेर(प्रैसवार्ता)। मां अपने हर रूप में कल्याणकारी होते हुए अपने श्रद्धालु गण पर कृपा करके उनके दुखों को दूर करती है तथा माता का हर रूप चमत्कारी तथा मनोहरी होता है। भारतवर्ष में अनेकों ऐसे धार्मिक स्थल है, जहां मां चमत्कारी मूर्ति के रूप में विराजमान है, जहां बार-बार जाने को मन करता है। ऐसे धार्मिक स्थलों में राजस्थान के बीकानेर से करीब 30 किलोमीटर की दूरी पर जोधपुर रोड़ पर स्थिति एक ग्राम देश नोक में मां करणी देवी का मंदिर है, जिसे चूहों वाला मंदिर भी कहा जाता है। लोगों की मान्यता है कि मां करणी देवी साक्षात मां जगदंबा की अवतार है और करीब 650 वर्ष पूर्व, जिस स्थान पर भव्य मंदिर बना हुआ है, वहां एक गुफा में रहकर मां ईष्ट देव की पूजा किया करती थी, जो आज भी मंदिर में स्थित है। मां के ज्योतिलीन होने पर उनकी इच्छानुसार उनकी मूर्ति की इस गुफा में स्थापना की गई है। मां के आर्शीवाद से बीकानेर और जोधपुर राज्य की स्थापना हुई। मां के भक्त पूरे देशभर में है, जो समय-समय मां के दर्शन को देशनोक आते है।

चूहों की धमा चौकड़ी से पैदल चलने से लोग घबरा जाते है और अपने कदमों को घसीटते हुए मां करणी देवी की मूर्ति के समक्ष पहुंचते है। चूहे पूरे प्रांगण में मौजूद रहकर भक्तों के शरीर पर कूद-फांद करते है, मगर किसी को नुकसान नहीं पहुंचाते। चील, गिद्ध और दूसरे मांसाहारी जानवरों से चूहों की सुरक्षा के लिए मंदिर में खुले स्थानों पर बारीक जाली लगी हुई है। ऐसी भी यहां मान्यता है कि भाग्यवान लोगों को ही यहां सफेद चूहों के दर्शन होते है, जिन्हें शुभ माना जाता है। इस मंदिर में प्रात: पांच से सात बजे तक आरती समय चूहों का जुलूस देखने योग्य होता है। बताया जाता है कि 1595 की चैत्र में शुक्ल पक्ष की नवमी को करणी मां ज्योतिलीन हुई, तभी से मां की पूजा हो रही है। मां करणी के सौतले पुत्र की कुएं में गिरने से मृत्यु होने पर मां ने यमराज से पुत्र को जीवित करने की मांग की, तो यमराज ने मां के पुत्र को जीवित कर दिया, मगर एक चूहे के रूप में। तभी से यह माना जाता है कि मां करणी के वंशज मृत्यु उपरांत चूहे बनकर जन्म लेते है और इस मंदिर में स्थान पाते है। नवरात्रों पर वहां एक विशाल मेला लगता है, जिसमें देश भर से श्रद्धालु दर्शन करने तथा मन्नते मांगते है। श्रद्धालुओं के ठहरने के लिए मंदिर के पास धर्मशालाएं भी है।-चंद्र मोहन ग्रोवर(प्रैसवार्ता)