
चूहों की धमा चौकड़ी से पैदल चलने से लोग घबरा जाते है और अपने कदमों को घसीटते हुए मां करणी देवी की मूर्ति के समक्ष पहुंचते है। चूहे पूरे प्रांगण में मौजूद रहकर भक्तों के शरीर पर कूद-फांद करते है, मगर किसी को नुकसान नहीं पहुंचाते। चील, गिद्ध और दूसरे मांसाहारी जानवरों से चूहों की सुरक्षा के लिए मंदिर में खुले स्थानों पर बारीक जाली लगी हुई है। ऐसी भी यहां मान्यता है कि भाग्यवान लोगों को ही यहां सफेद चूहों के दर्शन होते है, जिन्हें शुभ माना जाता है। इस मंदिर में प्रात: पांच से सात बजे तक आरती समय चूहों का जुलूस देखने योग्य होता है। बताया जाता है कि 1595 की चैत्र में शुक्ल पक्ष की नवमी को करणी मां ज्योतिलीन हुई, तभी से मां की पूजा हो रही है। मां करणी के सौतले पुत्र की कुएं में गिरने से मृत्यु होने पर मां ने यमराज से पुत्र को जीवित करने की मांग की, तो यमराज ने मां के पुत्र को जीवित कर दिया, मगर एक चूहे के रूप में। तभी से यह माना जाता है कि मां करणी के वंशज मृत्यु उपरांत चूहे बनकर जन्म लेते है और इस मंदिर में स्थान पाते है। नवरात्रों पर वहां एक विशाल मेला लगता है, जिसमें देश भर से श्रद्धालु दर्शन करने तथा मन्नते मांगते है। श्रद्धालुओं के ठहरने के लिए मंदिर के पास धर्मशालाएं भी है।-चंद्र मोहन ग्रोवर(प्रैसवार्ता)