Sunday, 1 January 2012

रात 12 बजे से फिर महंगा होगा पेट्रोल!


नई दिल्ली:  कंपनियां नये साल में महंगे पेट्रोल का झटका दे सकती हैं। डालर के मुकाबले कमजोर रुपये को देखते हुये पेट्रोल के दाम 2.10 से 2.13 रुपये प्रति लीटर बढ़ सकते हैं। तेल कंपनियां हर महीने की पहली और 16 तारीख को पखवाड़े के औसत आयात मूल्य के हिसाब से तेल मूल्यों की समीक्षा करती हैं।

तेल कंपनियों की सोमवार को बैठक है जिसमें माना जा रहा है कि तेल कीमजों में इजाफा हो सकता है।

हालांकि, तेल कंपनियों के समक्ष एक समस्या यह भी है कि पांच राज्यों में जल्द ही विधानसभा चुनाव होने हैं। कंपनियों को पेट्रोल के दाम घटाने अथवा बढ़ाने की छूट है लेकिन फिर भी उन्हें राजनीतिक स्तर पर इसकी मंजूरी तो लेनी ही होगी।

एक अधिकारी ने कहा कि अंतरराष्ट्रीय बाजार में पेट्रोल के दाम तो ज्यादा नहीं बढ़े हैं, यह करीब करीब पिछले स्तर पर ही हैं लेकिन इस दौरान डालर के मुकाबले रुपये के घटकर 53 तक गिर जाने से आयात महंगा हो गया। इससे पेट्रोल के दाम 1.78 रुपये प्रति लीटर बढ़ने चाहिये। स्थानीय करों को जोड़कर यह वृद्धि 2.10 से लेकर 2.13 रुपये प्रति लीटर तक हो सकती है।

इंडियन आयल और भारत पेट्रोलियम के दिल्ली स्थित पेट्रोल पंप पर वर्तमान में पेट्रोल का दाम 65.64 और हिन्दुस्तान पेट्रोलियम के पेट्रोल पंप पर 65.65 रुपये प्रति लीटर है। तेल कंपनियों ने इससे पहले 15 और 16 दिसंबर को दाम नहीं बढ़ाये। उस समय भी उन्हें एक रुपये का नुकसान हो रहा था। उन्हें लगा कि रुपये की गिरावट थामने के लिये रिजर्व बैंक के प्रयास स्थिति में सुधार लायेंगे।

इससे पहले नवंबर में तेल कंपनियों ने दो बार पेट्रोल के दाम कम किये। तेल कंपनियों ने 16 नवंबर को 2.22 रुपये और एक दिसंबर से 0.78 रुपये प्रति लीटर दाम कम किये। ये दाम 30 नवंबर को 51.50 रुपये प्रति डालर की विनिमय दर पर तय किये गये थे। इसके बाद विनिमय दर में वृद्धि का रुख रहा है।

बहरहाल, डीजल, रसोई गैस और मिट्टी तेल पर सरकार का नियंत्रण है। मौजूदा दाम पर कंपनियों को इनपर भारी घाटा उठाना पड़ रहा है। डीजल की मौजूदा कीमत पर 12.71 रुपये, राशन के मिट्टी तेल पर 29.93 रुपये और घरेलू गैस सिलेंडपर पर 326 रुपये का नुकसान वह उठा रही हैं

तहरीर चौक पर मनाया नया साल

मिस्र में तहरीर चौक पर हजारों प्रदर्शनकारियों ने नया साल मनाया और आतिशबाजी की। पिछला साल जहां राजनीतिक उथल-पुथल और भीषण संघर्ष से भरा रहा वहीं देश ने लोकतांत्रिक शासन की ओर पहला कदम भी रखा।

देश के झंडे को हाथ में ली हुई एक महिला ने कहा कि हम यहां इसाईयों और मुसलमानों के साथ एकजुट होकर नए साल का जश्न मनाने के लिए हैं। एक अन्य ने कहा कि यह वही स्थान है, जहां क्रांति शुरू हुई और यहीं पर वह जारी रहेगी।

हुस्नी मुबारक की सत्ता का पतन करने वाले प्रदर्शनों का केंद्र क्रांति के दौरान मारे गए लोगों को याद करने के स्थल में बदल गया। मुबारक के सत्ताच्युत होकर हटने के बाद भी यह प्रदर्शनों का केंद्र बना हुआ है।

तहरीर चौक पर राष्ट्रगान गाया गया, कुछ लोगों के हाथों में क्रांति के दौरान मारे गए लोगों के पोस्टर थे तो कुछ ने हाथ में जलती हुई मोमबत्तियां ले रखी थीं।

स्वर्ण मंदिर से शुरू हुआ मनमोहन का नववर्ष

प्रधानमंत्री मनमोहनसिंह ने अपनी पत्नी गुरशरण कौर के साथ सिखों के पवित्र पूजास्थल स्वर्ण मंदिर में मत्था टेककर नए साल की शुरुआत की। निजी यात्रा पर यहां आए प्रधानमंत्री जब वे 16वीं शताब्दी में निर्मित गुरुद्वारे में मत्था टेक रहे थे उस समय उनके साथ काफी संख्या में लोग मौजूद थे।

मनमोहनसिंह सुबह 6.30 बजे स्वर्ण मंदिर पहुंचे और वहां करीब आधा घंटा बिताया। इस बीच स्वर्ण मंदिर में मत्था टेककर निकलते प्रधानमंत्री सिंह और उनकी पत्नी गुरशरण कौर को गांधीवादी नेता अन्ना हजारे के समर्थकों का विरोध झेलना पड़ा। करीब 40 अन्ना समर्थक वहां पहुंचे और उन्होंने सरकार के खिलाफ नारेबाजी की। उनमें कुछ महिलाएं भी थीं। कुछ लोगोे उन्हें काले झंडे ी दिखाए।

स्वर्ण मंदिर नाम से मशहूर हरमंदर साहब के वीआईपी गलियारे में प्रधानमंत्री और उनकी पत्नी ने हाथ जोड़कर और आंख बंदकर पूरे ध्यान से शबद कीर्तन और अरदास को सुना।

प्रधानमंत्री सिंह जहां सफेद कुर्ता-पजामा और उसके ऊपर गहरे सलेटी रंग की जैकेट पहने हुए थे, वहीं उनकी पत्नी गुरशरण ने क्रीम रंग के सलवार कमीज पर महरून रंग की शॉल ओढ़ रखी थी। शनिवार शाम अमृतसर पहुंचे प्रधानमंत्री ने स्वर्ण मंदिर के सरोवर की परिक्रमा भी की।

उसके बाद वे अकाल तख्त गये और मत्था टेका। उन्होंने वहां पांच मिनट तक अरदास सुनी। प्रधानमंत्री के सुरक्षा घेरे में तीन मानव श्रृंखलाएं थीं। पहले घेरे में दिल्ली से गए एनएसजी के जवान, दूसरे में पंजाब पुलिस के जवान और उसके बाद सिखों की शीर्ष धार्मिक संस्था शिरोमणि गुरुद्वारा प्रबंधक कमेटी का कार्यबल था।

इससे पहले सिंह और उनकी पत्नी को सिख ग्रंथी जसविंदरसिंह ने सिरोपा भेंट किया। इसके बाद एसजीपीसी के महासचिव सुखदेवसिंह बहुर और एसजीपीसी सदस्य किरणजोत कौर ने स्वर्ण मंदिर सूचना केंद्र में उन्हें सम्मानित किया।

स्वर्ण मंदिर के सूचना अधिकारी गुरबचनसिंह ने कहा कि प्रधानमंत्री को स्वर्ण मंदिर का छोटा स्वर्णजड़ित चित्र, धार्मिक पुस्तकें और शॉल भी भेंट स्वरूप दिए गए। गुरबचन के अनुसार प्रधानमंत्री और उनकी पत्नी ने स्वर्ण मंदिर परिसर में हर की पौड़ी के सरोवर से अमृत भी ग्रहण किया।

स्वर्ण मंदिर में मत्था टेकने के बाद दोनों दुर्गियाना मंदिर पहुंचे जहां प्रबंधन ने उनका सम्मान किया। इसके बाद वे सर्किट हाउस लौट गए, जहां वे रात में भी ठहरे थे।

दिल्ली रवाना होने के लिए हवाई अड्डे जाने से पहले प्रधानमंत्री ने अमृतसर में रहने वाले अपने भाइयों सुरजीतसिंह कोहली, दलजीतसिंह कोहली, तीन बहनों ज्ञान कौर, निर्माण कौर और मनजीत कौर तथा उनके बच्चों के साथ करीब आधे घंटे का समय बिताया।

सुरजीत ने कहा कि नए साल के मौके पर पूरे परिवार के लिए यह दुर्लभ क्षण था क्योंकि परिवार के 17 सदस्य एक साथ बैठे और एक दूसरे को नए साल की मुबारकवाद दी।

अमृतसर प्रधानमंत्री का गृहनगर है। उन्होंने स्थानीय हिंदू कॉलेज से पढ़ाई की थी। भारत के विभाजन के बाद उनका परिवार पाकिस्तान से यहां आया था। उनके अन्य रिश्तेदार भी इस शहर में रहते हैं। इससे पहले प्रधानमंत्री मार्च 2009 में स्वर्ण मंदिर गए थे। उसके कुछ सप्ताह पहले ही उन्होंने नई दिल्ली स्थित एम्स में अपनी हार्ट सर्जरी कराई थी।

अन्ना पक्ष ने किया बचाव : अन्ना पक्ष ने मनमोहनसिंह को कालेझंडे दिखाए जाने का यह कहते हुए बचाव किया कि यह मजबूत लोकपाल के लिए लोगों की मांग को दर्शाता है। अन्ना पक्ष की सदस्य किरण बेदी से जब पूछा कि क्या वे प्रधानमंत्री के खिलाफ प्रदर्शन को सही मानती हैं तब उन्होंने कहा कि काला झंडा दिखाना कानून के दायरे में है। अत: यह वैध विरोध है।

हालांकि अन्ना पक्ष की अन्य सदस्य शाजिया इल्मी ने इस बात से इनकार किया कि प्रदर्शनकारी इंडिया एगेंस्ट करप्शन (आईएसी) के कार्यकर्ता थे। आईएसी मजबूत लोकपाल कानून बनाने की मांग को लेकर मुहिम चला रही है। इल्मी ने एक टेलीविजन चैनल से कहा कि मैं नहीं मानती कि यह अन्ना पक्ष के इशारे पर हुआ, लेकिन लोग जो अनुभव करते हैं और एहसास करते हैं, यह उसी का परिलक्षण है। 

उन्होंने कहा कि मेरा अनुमान है कि यह लोगों के मूड का परिणाम है क्योंकि वे कठोर भ्रष्टाचार निरोधक कानून चाहते हैं और यह हो नहीं रहा। इल्मी ने चेतावनी दी कि अन्य दलों को भी भविष्य में ऐसे स्थिति से दो चार होना पड़ सकता है क्योंकि लोग हाल के घटनाक्रम से नाराज हैं।

गालिब का व्यक्तित्व ‘भारत रत्न’ से बड़ा : यश मालवीय


ग़ालिब को भारत रत्न दिए जाने के विषय पर बैठक[/B] : इलाहाबाद। साहित्यिक पत्रिका ‘गुफ्तगू’ के तत्वावधान में हरवारा, धूमनगंज में बैठक आयोजित की गई, जिसमें मशहूर शायर मिर्ज़ा गालिब को ‘भारत रत्न’ पुरस्कार दिए जाने की मांग पर चर्चा की गई। एहराम इस्लाम ने कहा कि पूरी दुनिया मिर्जा गालिब की शायरी की कायल है, उर्दू अदब के नाक हैं गालिब, इसलिए यदि उनको भारत रत्न एवार्ड दिया जाता है तो यह हम सभी के लिए हर्ष का विषय होगा। उन्होंने यह भी जोड़ा कि मुझे लगता है कि यदि भारत सरकार ऐसा निर्णय लेती है तो इसका कोई विरोध भी नहीं करेगा।

गीतकार यश मालवीय की राय उनसे भिन्न रही। उन्होंने कहा कि गालिब का व्यक्तित्व भारत रत्न से बहुत बड़ा है, सौ भारत रत्न मिलकर भी गालिब की बराबरी नहीं कर सकते। उन्होंने अपनी बात को आगे बढ़ाते हुए कहा कि इस तरह की मांग उठाने का कोई औचित्य नहीं है, अगर ऐसी मांग होगी तो फिर तुलसी, मीर, सूर आदि कवियों को भारत रत्न क्यों नहीं दिया जा सकता? दरअसल, इन सब रचनाकारों का व्यक्तित्व ‘भारत रत्न’ से बहुत बड़ा है।

गुफ्तगू पत्रिका के संरक्षक इम्तियाज अहमद गाजी का कहना था कि गालिब, सूर, निराला, मीर आदि कवियों का व्यक्तित्व और कृतित्व बहुत बड़ा है, इसलिए इनको भारत रत्न दिए जाने के बजाए वर्तमान समय के जो बड़े रचनाकार हैं, जिनकी रचनाओं में देशभक्ति के पुट हैं, उनको यह एवार्ड दिए जाने की मांग उठानी चाहिए। यह बड़े दुख की बात है कि भारत रत्न के लिए जिन लोगों के नामों पर चर्चा की जा रही है, उनमें साहित्यकारों को शामिल नहीं किया गया है। साहित्यकार जयकृष्ण राय तुषार ने कहा कि गालिब जैसे रचनाकार तब के हैं, जब भारत रत्न पुरस्कर की शुरुआत भी नहीं हुई थी, उनको यह एवार्ड दिए जाने की मांग करना ठीक नहीं हैं, उन्होंने अपनी बात को आगे बढ़ाते हुए कहा कि इससे बेहतर तो यह होता कि निदा फाजली जैसे शायरों को गालिब एवार्ड दिए जाने की बात की जाती, क्योंकि निदा फाजली के पिता पाकिस्तान चले गए थे, लेकिन वे भारत में ही रहे, उनके व्यक्तित्व में भारतीयता झलकती है।

मुशायरों के मशहूर संचालक नजीब इलाहाबादी ने कहा कि गालिब जैसे बड़े शायर को यह एवार्ड जरूर दिया जाना चाहिए, क्योंकि इन्होंने अपनी शायरी का परचम पूरे विश्व में लहराया है। आसरा फाउंडेशन के अध्यक्ष प्रदीप तिवारी का कहना था कि जिस तरह भारत रत्न पुरस्कार देने के लिए खिलाड़ियों के नाम पर चर्चा की जा रही है, उसी तरह निश्चित रूप से साहित्यकारों के नाम पर भी विचार-विमर्श किया जाना चाहिए। बैठक में इनके अलावा स्वालेह नदीम, अख्तर अजीज, संतोष तिवारी, शिवपूजन सिंह, वाकिफ अंसारी, सुनील दानिश, रमेश नाचीज, संजय सागर, डा0 शैलेष गुप्त ‘वीर’ आदि ने विचार रखे।

पुलिस और ई टीवी के गठजोड़ से नाराज पत्रकारों ने नहीं खेला मैच

रविवार को नीमच जिले के आला पुलिस अधिकारियों और शहर के पत्रकारों के बीच एक मैत्री क्रिकेट मैच का आयोजन पुलिस के खेल विभाग ने रखा था। पर, ये मैच हो ही नहीं सका। शहर के पत्रकारों ने मैच खेलने से ही इनकार कर दिया। पुलिस अधिकारियों को जब पत्रकारों के रूख का पता चला तो उनके होश उड़ गये। ऐसा क्यों हुआ? इसको लेकर जो कुछ सामने आया है उससे लोग चौंके हैं।

पुलिस के एक आला अधिकारी ने ई टीवी के ब्यूरो प्रमुख का नाम लेकर ये कह दिया था कि पत्रकारों की टीम उसी के नेतृत्व में खेलेगी। इस पर दूसरे पत्रकार भड़क गये और कहने लगे, बहुत हो गया अब ई टीवी और पुलिस का नापाक गठजोड़! अब इसे बर्दाश्त नहीं किया जायेगा। पत्रकार गुस्सा थे कि आखिर क्यों पुलिस ही ये तय करने में जुटी थी कि पत्रकारों की टीम का नेतृत्व ई टीवी वाला ही करेगा। देखते-देखते कई पत्रकारों ने पुलिस के खेल अधिकारी श्री सलाम को मैच खेलने से इनकार कर दिया। तब पुलिस में हलचल मची। आला अधिकारियों को भी मालूम पड़ा कि आखिर हो क्या रहा है। पत्रकार पिछले लंबे अरसे से पुलिस के निचले स्तर के अधिकारियों के साथ ई टीवी के स्टाफरों की नापाक जुगलबंदी से हो रही लूटपाट के किस्से सुनते और देखते आ रहे थे। वे देख रहे थे कि एक लंबे अरसे से ई टीवी कैमरा मैन, जो एक नहीं अनेक होते हैं, वे अक्सर दिन भर पुलिस थानों में ही मंडराते हैं। कोई शिकायतकर्ता आया नहीं कि उसकी कथा कहानी सुनकर वो जिसके खिलाफ शिकायत करने आया है, उसे ई टीवी का भोंगला लेकर चमकाने पहुंच जाते हैं।

पुलिस के यहां से कार्रवाई बाद में होती है पर, ई टीवी और उन्हीं के दफ्तर में चल रही मोबाइल ब्रेकिंग न्यूज एजेंसी वाइस आफ एमपी का आपरेशन पहले ही चालू हो जाता है। ये ही हाल अफीम से जुड़े मामलों में नजर आता है। पुलिस जब माल पकड़ती है तब उसे कागजात तैयार करने और बरामद माल की मात्रा बताने में दो से चार घंटे लग पाते है, पर ई टीवी का भोंगला लेकर अपराधी किस्म के लोग भी वहां पहुंच जाते हैं और लोगों की बाईट लेने का उपक्रम करते नजर आने लगते हैं। पुलिस अफीम के मामलों में अक्सर सेटिंग करती है ऐसे में सेटिंग से पहले ही चैनल वाले पहुंच जाए तो सारा गुड़़गोबर हो जाता है। ऐसे में पुलिस वाले इनसे चमकने लगे, तो ये माथे बैठते नजर आने लगे। थानों में दिन भर ये मंडराये और बाद में बड़े अधिकारियों के चेंबर में भी ये ठसे नजर आये। हालात ऐसे बने कि पुलिस वाले इनके ब्लैकमेल के शिकार होने लगे। अफीम जब्‍ती के मामले में मौके पर भोंगला लेकर नहीं आने और जब्‍ती का समाचार ब्रेकिंग न्यूज में डालने पर पुलिस वाले मोटे-मोटे लिफाफे इन्हें देने को मजबूर होने लगे। जब पुलिस वाले बिलकुल ही डरते नजर आने लगे तब तो ई टीवी वाले एक कदम और आगे बढ़ते नजर आने लगे।

अब पुलिस वालों को ये निर्देश दिये जाने लगे कि वे दफ्तर पर आये और हाजिरी बजायें। अपराधियों और प्रापर्टी दलालों का जमघट ई टीवी के ब्यूरो दफ्तर पर नजर आने लगा और पुलिस वाले भी वहीं बैठकर सौदे-सूद और तोड़-बट्टे करने लगे। ये सब हालात पत्रकारों की निगाहों में थे। पर, एक मामला ऐसा भी हो गया जिसमें ये एक पत्रकार को ही पुलिस के माध्यम से चमकाने से नहीं चूके। सुबह के अखबार भास्कर की मार्केटिंग एजेंसी चलाने वाला भी ई टीवी वालों की शरण में जाकर वो भी एक चैनल का भोंगला ठोंक लाया। उसका भास्कर के स्थानीय एजेंट शांतिलाल अहीर से कोई छोटा मोटा तनाव हो गया। बस, फिर क्या था। पहुंच गया भास्कर के एजेंसी दफ्तर पर पुलिस का दस्ता। वो तो दफ्तर भी बंद था और उस पर भास्कर का बोर्ड भी लगा था तब पुलिस वालों को भी समझ आयी कि किस तरह उनको ही उलझाया जा रहा है। बाद में शांतिलाल अहीर कुछ लोगों को लेकर पुलिस के आला अधिकारियों के पास ज्ञापन लेकर पहुंचा और कहा, किस तरह उसके खिलाफ साजिश रची गई। साफ तौर पर उस साजिशकर्ता का नाम लिखा गया। हद तो तब हो गई सुबह 11.55 पर आवेदन दिया गया और 12.10 पर उस आवेदन की कापी पुलिस के यहां से निकलकर ई टीवी के दफ्तर पर पहुंच गई थी और वहां वो साजिशकर्ता कापी हाथ में लेकर अट्टाहास कर रहा था कि क्या कर लिया शांतिलाल ने। वो कह रहा था पुलिस हमारा कुछ नहीं बिगाड़ सकती। हमारा अपना एक सिडिंकेट है जिससे पुलिस का गठजोड़ है।

भास्कर के सीधे-सादे एजेंट शांतिलाल को ही फर्जी मामले में फंसाने की साजिश का जब खुलासा हुआ तो शहर के पत्रकारों में पुलिस और ई टीवी के इस नापाक गठजोड़ के खिलाफ गुस्सा और गहरा हो गया जो अब फट पड़ा है। ई टीवी की अगुवाई में मैच न खेलने का फैसला शहर के पत्रकारों का शहर भर में चर्चा का विषय बना है। इधर, मनासा में भी ई टीवी का भोंगला एक ऐसा आदमी लेकर घूमता दिखाई दे रहा है जो पहले कभी बैंक की डकैती डालकर तिजोरी ही चुरा लाने का अपराधी बनकर जेल काट आया है। ये आदमी अपराधिक प्रवृत्ति के बांछड़ा समुदाय के लोगों की गतिविधियों को सहयोग करता है। चोरी का माल लाने ले जाने में अपनी प्रेस लिखी गाड़ी भी उन्हें मुहैया कराता है। ऐसे आदमी को ई टीवी का मनासा का स्ट्रिंगर बना दिये जाने से वहां भी पत्रकारों में ई टीवी के नीमच ब्यूरो के खिलाफ गुस्सा है। ई टीवी के नीमच ब्यूरो से शहर के पत्रकारों में गुस्से की एक वजह और भी है। ब्यूरो प्रमुख ने दो फर्जी पत्रकार संगठन खड़े करके उसकी अलग से दुकानदारी चालू कर रखी है। एक मालवा श्रमजीवी पत्रकार संघ के नाम से संगठन खड़ा किया गया है तो दूसरा मालवा मेवाड़ इलेक्‍ट्रानिक मीडिया पत्रकार संघ बनाया है। दोनों ही संगठनों में फर्जी और आपराधिक किस्म के पत्रकारों की भरमार की गई है। ऐसे लोग सट्टे की दुकान से लेकर मीट-मच्छी की दुकान तक चैनल का भोंगला लिये नजर आ जाते है। मनासा से भागकर आये दो कथित पत्रकार जिन पर लोगों को धमकाने के आपराधिक मुकदमे दर्ज हैं, वे भी नीमच में ई टीवी की शरण में आकर खुली गुण्डागर्दी कर रहे हैं।

दोनों फर्जी पत्रकार संगठनों के माध्यम से ई टीवी का नीमच ब्यूरो वास्तविकता में काम कर रहे पत्रकारों को भी अपमानित करता नजर आ रहा था। पर होता है कि एक दिन गुस्सा फट पड़ता है। काठ की हांडी फट जाती है। पत्रकारों का ई टीवी के साथ मैच न खेलने का फैसला तो कम से कम ये ही इबारत लिखता नजर आ रहा है। पुलिस वालों को भी समझ आ रही है कि जाने-अनजाने पत्रकारिता की आड़ में हम किस तरह एक गिरोह के हाथों का शिकार होने लगे थे। इस गिरोह के लोगों को लूटने-खसोटने और जमीनों पर बेजा कब्जा जमाने के इतने किस्से पसरे हैं, जिसकी कोई हद नहीं। कई सारे बेकसूर लोगों को बेवजह जेल के सिंकचों तक पहुंचा दिया है, ई टीवी नीमच ब्यूरो की अगुवाई में बने पत्रकार, पुलिस और अपराधिक तत्वों के इस सिडिंकेट ने। शहर में आपराधिक तत्वों से भय दिखाने का भी एक सोचा-समझा खेल खेलते भी ये लोग नजर आ रहे थे। कुछ हत्या जैसे मामलों में उलझे अपराधी जो इस गैंग में शरीक हैं, उन्हें सार्वजनिक रूप से ब्यूरो प्रमुख के धोक लगानी होती थी। चाहे फिर वे दिन में 6 बार ही सामने क्यों न आये। इससे ये गिरोह सामान्य लोगों पर अच्छा रूतबा जमाने में कामयाब होते थे। जो भी होता है, अच्छा ही होता है।

‘लाइफ ओके’ को पहले सप्ताह में मिली शानदार ओपनिंग


लाइफ ओके’ ने ‘स्टार इंडिया’ के लिए 2011 का अंत अच्छा बेहतरीन दिया है। ‘लाइफ ओके’ को 87 जीआरपी मिली है और इसने ‘इमेजिन’ को जनरल एंटरटेनमेंट चैनलों में छठे स्थान पर खिसका दिया है। इससे पहले, ‘स्टार वन’ को मिले रेटिंग से नाम बदलने (लाइफ ओके) के बाद से दोगुनी रेटिंग है। 
 
 ‘लाइफ ओके’ के पहले सप्ताह में मिली रेटिंग से दर्शकों के बीच इसकी स्वीकार्यता को पर्याप्त साबित करने के लिए यह काफी नहीं है। ‘स्टार इंडिया’ ने अपने इस “एक सप्ताह पुराने शिशु” के बारे में, इसके प्रदर्शन या आशाओं पर कोई भी टिप्पणी करने से मना कर दिया है।
 
‘स्टार इंडिया’ के सीईओ, उदय शंकर ने एक्सचेंज4मीडिया समूह से बात करते हुए कहा, “चैनल को कापी सोच-विचार के बाद से लॉन्च किया गया है। ‘लाइफ ओके’ टीम ने काफी प्रभावशाली कार्य किया है। लेकिन हम इसके प्रदर्शन का आंकलन कुछ महीनों के बाद ही कर पायेंगे। ‘स्टार इंडिया’में हल लोग लॉन्च (नई शुरुआत) को एक दिन या एक सप्ताह की गतिविधि के रूप में शुरू नहीं करते हैं। लॉन्चिंग एक ऐसी चीज है जो कुछ समय के लिए वर्क इन प्रोग्रेस (कार्य में सुधार) की प्रक्रिया में रहता है  और हम लोगों को कोई जल्दीबाजी नहीं है।”
 
‘लाइफ ओके’ पर जिस शो को सबसे अधिक रेटिंग मिली है वह है पौराणिक कथाओं पर आधारित शो – “महादेव” और“सौभाग्यवती भव”। हर एपिसोड के अनुसार इन दोनों धारावाहिकों ने 1 से अधिक टेलीविजन रेटिंग मिली है।
 
‘सच का सामना’ शो को राजीव खंडेलवाल के द्वारा एंकरिंग की जा रही है और अभी भी इसकी रेटिंग 1 टेलीविजन रेटिंग से कम है
 
एक वरिष्ठ मीडिया विशेषज्ञ ने कहा, “वर्तमान में, चैनल के पास प्राइम टाइम में बमुश्किल ही कोई विज्ञापन है और चैनल पर अधिक से अधिक दर्शकों के आने का यह भी एक कारण है।”