Thursday 29 March 2012

विचार योग' से पाएं सेहत, खुशी और सफलता


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अजीब है कि कोई दवा नहीं, एक्सरसाइज नहीं और कोई भी इलाज नहीं फिर भी लोग सोचकर कैसे ठीक हो सकते हैं? दुनिया में ऐसे बहुत से चमत्कार हुए हैं, लेकिन इसके पीछे के रहस्य को कोई नहीं जानता।

आज आप जो भी हैं वह आपके पिछले विचारों का परिणाम है-भगवान बुद्ध। सोचे अपनी सोच पर कि वह कितनी नकारात्म और कितनी सकारात्मक है, वह कितनी सही और कितनी गलत है। आप कितना अपने और दूसरों के बारे में अच्‍छा और बुरा सोचते रहते हैं। योग आपकी सोच को स्वस्थ बनाता है। सोच के स्वस्थ बनने से चित्त निर्मल होने लगता है। चित्त के निर्मल रहने से सेहत, खुशी और सफलता मिलती है तो विचार करें अच्छे विचार पर।

कैसे होगा यह संभव : योगश्चित्त्वृतिनिरोध:- योग चित्त की वृत्तियों का निरोध है। योग के आसन, प्राणायाम, प्रत्याहार आदि सभी उपक्रम आपके चित्त को शुद्ध और बुद्ध बनाने के ही उपक्रम हैं। चित्त से ही व्यक्ति का शरीर, मन, मस्तिष्क और जीवन संचालित होता है। चित्त यदि रोग ग्रस्त है तो इसका असर सभी पर पड़ता है। रोग की उत्पत्ति बाहर की अपेक्षा भीतर से कहीं ज्यादा होती है तो समझे कि जैसे भीतर वैसा बाहर।

वैज्ञानिक कहते हैं मानव मस्तिष्क में 24 घंटे में लगभग हजारों विचार आते हैं। उनमें से ज्यादातर नकारात्मक होते हैं। नकारात्मक विचार इसलिए अधिक होते हैं कि जब हम कोई नकारात्मक घटना देखते हैं जिसमें भय, राग, द्वैष, सेक्स आदि हो तो वह घटना या विचार हमारे चित्त की इनर मेमोरी में सीधा चला जाता है जबकि कोई अच्छी बातें हमारे चित्त की आउटर मेमोरी में ही घुम फिरकर दम तोड़ देती है।

दो तरह की मेमोरी होती है-इनर और आउटर। इनर मेमोरी में वह डाटा सेव हो जाता है, जिसका आपके मस्तिष्क पर गहरा प्रभाव पड़श है और फिर फिर वह डाटा कभी नहीं मिटता। रात को सोते समय इनर मेमोरी सक्रिय रहती है और सुबह-सुबह उठते वक्त भी इनर मेमोरी जागी हुई होती है। अपनी इनर मेमोरी अर्थात चित्त से व्यर्थ और नकारात्मक डाटा को हटाओ और सेहत, सफलता, खुशी और शांति की ओर एक-एक कदम बढ़ाओ।

कैसे बन जाता है व्यक्ति दुखी और रोगी : जो भी विचार निरंतर आ रहा है वह धारणा का रूप धर लेता है। अर्थात वह हमारी इनर मेमोरी में चला जाता है। आपके आसपास बुरे घटनाक्रम घटे हैं और आप उसको बार-बार याद करते हैं तो वह याद धारणा बनकर चित्त में स्थाई रूप ले लेगी। बुरे विचार या घटनाक्रम को बार-बार याद न करें।

विचार ही वस्तु बन जाते हैं। इसका सीधा-सा मतलब यह है कि हम जैसा सोचते हैं वैसे ही भविष्य का निर्माण करते हैं। यदि आपको अपनी सेहत को लेकर भय है, सफलता को लेकर संदेह है और आप विश्वास खो चुके हैं तो समझ जाएं की चित्त रोगी हो गया है। किसी व्यक्ति के जीवन में बुरे घटनाक्रम बार-बार सामने आ जाते हैं तो इसका सीधा सा कारण है वह अपने अतीत के बारे में हद से ज्यादा विचार कर रहा है। बहुत से लोग डरे रहते हैं इस बात से कि कहीं मुझे भी वह रोग न हो जाए या कहीं मेरे साथ भी ऐसा न हो जाए....आदि। सोचे सिर्फ वर्तमान को सुधारने के बारे में।

कैसे होगा यह संभव : योग के तीन अंग ईश्वर प्राणिधान, स्वाध्याय और धारणा से होगा यह संभव। जैसा ‍कि हमने उपर लिखा की इनर और आउटर मेमोरी होती है। इनर मेमोरी रात को सोते वक्त और सुबह उठते वक्त सक्रिय रही है उस वक्त वह दिनभर के घटनाक्रम, विचार आदि से महत्वपूर्ण डाडा को सेव करती है। इसीलिए सभी धर्म ने उस वक्त को ईश्वर प्रार्थना के लिऋ नियु‍क्त किया है ताकि तुम वह सोचकर सो जाए और वही सोचकर उठो जो शुभ है। इसीलिए योग में 'ईश्वर प्राणिधान' का महत्व है।

संधिकाल अर्थात जब सूर्य उदय होने वाला होता है और जब सूर्य अस्त हो जाता है तो उक्त दो वक्त को संधिकाल कहते हैं- ऐसी दिन और रात में मिलाकर कुल आठ संधिकाल होते हैं। उस वक्त हिंदू धर्म और योग में प्रार्थना या संध्यावंन का महत्व बताया गया है। फिर भी प्रात: और शाम की संधि सभी के लिए महत्वपूर्ण है जबकि हमारी इनर मेमोरी सक्रिय रहती है। ऐसे वक्त जबकि पक्षी अपने घर को लौट रहे होते हैं...संध्यावंदन करते हुए अच्छे विचारों पर सोचना चाहिए। जैसे की मैं सेहतमंद बना रहना चाहता हूं।

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ईश्वर प्राणिधान: सिर्फ एक ही ईश्वर है जिसे ब्रह्म या परमेश्वर कहा गया है। इसके अलावा और कोई दूसरा ईश्वर नहीं है। ईश्वर निराकार है यही अद्वैत सत्य है। ईश्वर प्राणिधान का अर्थ है, ईश्वर के प्रति पूर्ण समर्पण। ईश्वर के प्रति पूर्ण विश्वास। न देवी, न देवता, न पीर और न ही गुरु घंटाल।

एक ही ईश्वर के प्रति अडिग रहने वाले के मन में दृढ़ता आती है। यह दृढ़ता ही उसकी जीत का कारण है। चाहे सुख हो या घोर दुःख, उसके प्रति अपनी आस्था को डिगाएँ नहीं। इससे आपके भीतर पाँचों इंद्रियों में एकजुटता आएगी और लक्ष्य को भेदने की ताकत बढ़ेगी। वे लोग जो अपनी आस्था बदलते रहते हैं, भीतर से कमजोर होते जाते हैं।

विश्वास रखें सिर्फ 'ईश्वर' में, इससे बिखरी हुई सोच को एक नई दिशा मिलेगी। और जब आपकी सोच सिर्फ एक ही दिशा में बहने लगेगी तो वह धारणा का रूप धर लेगी और फिर आप सोचे अपने बारे में सिर्फ अच्‍छा और सिर्फ अच्छा। ईश्वर आपकी मनोकामना अवश्य पूरी करेगा।

स्वाध्याय : स्वाध्याय का अर्थ है स्वयं का अध्ययन करना। अच्छे विचारों का अध्ययन करना और इस अध्ययन का अभ्यास करना। आप स्वयं के ज्ञान, कर्म और व्यवहार की समीक्षा करते हुए पढ़ें, वह सब कुछ जिससे आपके जीवन में सकारात्मक ऊर्जा का संचार होता हो साथ ही आपको इससे खुशी ‍भी मिलती हो। तो बेहतर किताबों को अपना मित्र बनाएँ।

जीवन को नई दिशा देने की शुरुआत आप छोटे-छोटे संकल्प से कर सकते हैं। संकल्प लें कि आज से मैं बदल दूँगा वह सब कुछ जिसे बदलने के लिए मैं न जाने कब से सोच रहा हूँ। अच्छा सोचना और महसूस करना स्वाध्याय की पहली शर्त है।

धारणा से पाएं मनचाही सेहत, खुशी और सफलता : जो विचार धीरे-धीरे जाने-अनजाने दृढ़ होने लगते हैं वह धारणा का रूप धर लेते हैं। यह भी कि श्वास-प्रश्वास के मंद व शांत होने पर, इंद्रियों के विषयों से हटने पर, मन अपने आप स्थिर होकर शरीर के अंतर्गत किसी स्थान विशेष में स्थिर हो जाता है तो ऊर्जा का बहाव भी एक ही दिशा में होता है। ऐसे चित्त की शक्ति बढ़ जाती है, फिर वह जो भी सोचता है वह घटित होने लगता है। जो लोग दृढ़ निश्चयी होते हैं, अनजाने में ही उनकी भी धारणा पुष्ट होने लगती 

राम जन्मोत्सव : अनूठा दिव्य संयोग रामनवमी : 10 वर्ष बाद बना दसवां दिव्य संयोग


April 1 Ram Navami
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एक अप्रैल को रवि पुष्य नक्षत्र के मध्याह्न काल में दशरथ नंदन भगवान श्रीराम का जन्मोत्सव मनेगा। इस दिन चैत्र मास के शुक्ल पक्ष की नवमी तिथि, वार रविवार, पुष्य नक्षत्र, सुकर्मा योग तथा कौलव करण के साथ सर्वार्थ सिद्घि योग का दिव्य संयोग भी है। 

भारतीय मानक समय व स्थानीय रेखांश के आधार पर नक्षत्र मेखला की गणना से देखें तो गत 68 सालों में ऐसा शुभ संयोग केवल 9 बार ही बना है। यह 10वीं बार होगा, जब पंचाग के 5 अंगों की शुभ घड़ी में रामलला जन्मोत्सव मनेगा।

ज्योतिषाचार्य पं. अमर डब्बावाला के अनुसार इसी प्रकार की शुभ घड़ी में ही मर्यादा पुरुषोत्तम श्रीराम का जन्म हुआ था। 

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पंचाग के पांच अंगों के स्वामियों ने भगवान श्रीराम को पराक्रमी, शौर्यवान, ऐश्वर्यशाली, मर्यादा पुरुषोत्तम, दिग्विजयी, वैभवशाली, शक्ति संपन्न, विनम्र, आकर्षक व्यक्तित्व का स्वामी तथा कला की विभिन्न विधाओं में निपुण बनाया। इस दिन विशेष में राम आराधना से विशिष्ट फल की प्राप्ति होगी।

कब-कब बना संयो
सन् 1944, 54, 68, 71, 78, 81, 85, 95, 98 तथा 2002 के बाद इस वर्ष 2012 को ऐसा दिव्य संयोग बना है। अगले सात वर्षों के बाद सन्‌ 2019 में ऐसा ही शुभ संयोग बनेगा।

अफगानिस्तान: जहां लड़कों के भेष में रहती हैं लड़कियां

जिन परिवारों में बेटी पैदा होती है वहां बेटियों के जन्म के बाद आमतौर पर होने वाले कई तरह के बदलाव देखे जाते हैं जिनकी वजह आर्थिक और सामाजिक मसले होते हैं और ऐसा दुनिया के कई देशों में होता है। अफगानिस्तान में भी इन्हीं सामाजिक-आर्थिक वजहों से लंबे समय से लड़कियों को लड़कों की तरह पालने पोसने की प्रथा चली आ रही है।

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इस परंपरा के तहत लड़कियों का पूरा हुलिया ही लड़कों की तरह बदल दिया जाता है इस चलन को कहा जाता है 'बाचा-पोश'।

अजीता रफहात अफगानिस्तान के संसद की पूर्व सदस्य रह चुकी हैं। रोज सुबह जब वह अपनी चार बेटियों को स्कूल के लिए तैयार करती हैं तो तीन को लड़कियों के कपड़े लेकिन चौथी को लड़कों के कपड़े पहनाती हैं। अजीता रफहात की सबसे छोटी बेटी मेहरानूश जब घर से बाहर निकलती है तो वह मेहरान नाम के लड़के में तब्दील हो जाती है।

अजीता की यह कोशिश बेटा ना होने के कारण समाज में मिलने वाले तानों से बचने के लिए है और इसके लिए उसे ज़्यादा मेहनत भी नहीं करनी पड़ती है, सिर्फ मेहरान के बालों को छोटा रखने और उसे लड़कों के कपड़े पहनाने से सबकुछ काफी आसान हो गया है।

अफगानिस्तान में तो इस परंपरा को बाकायदा एक नाम भी दिया गया है, 'बाचा-पोश' यानि लड़कियों का भेष बदलकर उन्हें लड़का बनाने की परंपरा।

रफहात दंपत्ति कहते हैं, "अफगानिस्तान में अगर आप अच्छी हैसियत रखते हैं तो लोगों का नज़रिया आपके प्रति बदला रहता है। यहां के लोगों का मानना है कि जब तक आपका कोई बेटा नहीं हो तब तक आपकी जिंदगी अधूरी है। यहां हमेशा से बेटों को बेटियों के बनिस्पत ज़्यादा तरज़ीह दी जाती है। इसके पीछे कई सामाजिक और आर्थिक कारणों के अलावा, बेटा होना शान से जोड़कर देखा जाता है।

अजीता के पति ईज़ातुल्लाह रफहात के अनुसार, ''जो कोई भी हमारे घर आता था वह हमारा कोई बेटा न होने पर सहानुभूति जताता था, तब हमें लगा कि हमें अपनी सबसे छोटी बेटी को बेटे की तरह पालना चाहिए और वह भी ऐसा ही चाहती थी।'' अज़ीता ऐसा करने वाली इकलौती महिला नहीं है.

लड़कियों जैसी नहीं- अफगानिस्तान के बाजा़रों में आपको ऐसी कई लड़कियां नज़र आ जाएंगी जो लड़कों के भेष में काम करती हैं। कई परिवार अपनी लड़कियों को लड़के का रूप इसलिए भी धारण करवाते हैं ताकि वह अपने परिवार के भरण-पोषण करने के लिए बाहर जाकर काम कर सके।

पांच से बारह साल की उम्र की ये बच्चियां अक्सर सड़कों पर लड़कों के भेष में च्वींगगम या पानी की बोतलें बेचते हुए नज़र आ सकती हैं।

लेकिन जिन लड़कियां को लड़कों की तरह पाला-पोसा जाता है वो हमेशा ऐसे नहीं रहतीं। 17-18 साल की उम्र में उन्हें एक बार फिर से वापिस अपने सामान्य रूप और जीवन में लौटना पड़ता है जो कई बार आसान नहीं होता।

उत्तरी अफगानिस्तान के मज़ार-ए-शरीफ में रहने वाली ईलाहा 20 साल तक लड़के के रूप में रही क्योंकि उसके परिवार में कोई लड़का नहीं था और दो साल पहले ही अपने असल रंग-रूप में वापस आई है जब वह पढ़ाई के लिए विश्वविद्यालय जा रही थी।

लेकिन ईलाहा कहती है कि वह एक सामान्य लड़की की तरह महसूस नहीं करती और उसकी आदतें भी लड़कियों जैसी नहीं हैं। ईलाहा कहती है कि वह शादी भी नहीं करना चाहती।

ईलाहा के मुताबिक,'' जब मैं बच्ची थी तब मेरे माता-पिता मुझे लड़के के भेष में रखने लगे। कुछ समय पहले तक मैं भी अन्य लड़कों के साथ बाहर खेल सकती थी और मुझे ज़्यादा आज़ादी मिली हुई थी।''

ईलाहा कहती है वह अपना मन मारकर वापस लड़की के रूप में आई है और उसने ऐसा सिर्फ सामाजिक मान्यताओं के कारण किया है। ईलाहा के अनुसार, ''अगर मेरे मां-बाप ज़बरदस्ती मेरी शादी करवाते हैं तो मैं सभी अफगानिस्तानी महिलाओं के दुखों का बदला लूंगी। मैं अपने पति को इतना पीटूंगी कि वह रोज़ मुझे अदालत लेकर जाए।''

एक जैसी कहानी- अफगानिस्तान में बहुत सारी लड़कियां लड़कों की तरह रहती हैं ताकि वे घर से बाहर जाकर काम कर सकें। अफगानिस्तान के मशहूर ब्लू मस्जिद के प्रमुख अतीकुल्लाह अंसारी कहते हैं, "यह परंपरा ईश्वर से याचना करने जैसी है। जिन परिवारों में बेटा नहीं होता वे लड़कियों को लड़कों की तरह रखते हैं ताकि उनकी किस्मत खुल जाए और ईश्वर उन्हें एक बेटा दे दे।"

वे आगे कहते हैं, ''जिन माओं के बेटे नहीं है वे हज़रत-ए-अली की दरगाह़ आकर बेटे के लिए मन्नत मांगती हैं।'' अंसारी का कहना है कि इस्लाम के अनुसार जो लड़कियां बचपन में लड़कों की तरह रहीं है, उन्हें भी युवावस्था में अपना सिर ढक कर रखना चाहिए।

अफगानिस्तान के समाज में यह परंपरा काफी आम है, यहां लगभग हर परिवार या मोहल्ले में ऐसे उदाहरण मिलने आम बात है।

अफगानिस्तान के उत्तरी प्रांत बाल्ख में स्त्री अधिकारों से जुड़े विभाग की प्रमुख फरीबा माजिद भी बचपन में वाहिद के नाम से लड़के के रूप में रहती थीं। फरीबा कहती हैं, ''मैं अपने परिवार की तीसरी बेटी थी और मेरे जन्म के साथ ही मेरे माता-पिता ने ये तय कर लिया था कि वे मुझे लड़के की तरह रखेंगे।''

''मैं अपने पिता के साथ उनकी दुकान पर काम करती थी और उनके साथ सामान खरीदने काबुल भी जाती थी।'' फरीदा को लगता है कि यहां मिले अनुभवों से उनका आत्मविश्वास बढ़ा है और उन्हें जीवन में आगे बढ़ने में मदद मिली है।

यह कोई ताज्जुब की बात नहीं है कि मेहरान की मां अज़ीता रफहात भी अपने बचपन में लड़के के भेष में रह चुकी हैं। अज़ीता कहती हैं, ''यह राज कोई नहीं जानता कि मैं भी बचपन में लड़के के रूप में रह चुकी हूं और अपने पिता के काम में उनकी मदद करती थी। इस तरह से मुझे एक लड़की और लड़का दोनों की दुनिया देखने का मौका मिला और इससे मैं जीवन में और ज्यादा महत्वकांक्षी बनी।''

अधिकारों का उल्लंघन- यह परंपरा अफगानिस्तान में सदियों से चली आ रही है। काबुल में रह रहे समाजशास्त्री दाउद राविश के अनुसार, ''इसकी शुरुआत तब हुई हो सकती है जब अफगानिस्तान पर आक्रमणकारियों ने हमला किया हो और औरतों को खुद को उनसे बचाने के लिए अपना रूप बदलना पड़ा हो।''

लेकिन बाल्ख मानवाधिकार संगठन के प्रमुख काज़ी सय्यद मोहम्मद सामी इसे मानवाधिकारों का उल्लंघन बताते है। काज़ी कहते हैं, ''हम थोड़े समय के लिए किसी का भी लिंग नहीं बदल सकते, हम किसी लड़की को थोड़े समय के लिए लड़का नहीं बना सकते हैं, यह मानवता के खिलाफ है।''

इस परंपरा ने बहुत सी लड़कियों से उनका मौलिक अधिकार छीन लिया है। कुछ लड़कियों को ऐसा लगता है कि उन्होंने अपने बचपन के सुनहरे दिन खो दिए हैं तो कुछ को लगता है कि उनसे उनकी पहचान ही छीन ली गई है।

लेकिन कुछ लड़कियों को लगता है कि इस परंपरा ने उन्हें आज़ादी के वे अनुभव दिए हैं जो उनके देश में एक लड़की को कभी नहीं मिल पाता। लेकिन कुछ लोगों के लिए अब भी यह सवाल सबसे बड़ा है कि, ''आखिर अफगानिस्तान में ऐसा कब होगा जब यहां की बेटियों को बेटों के समान आज़ादी और सम्मान भरी ज़िंदगी नसीब होगी?''

ओबामा के स्वर्ण मंदिर में न आने का कारण पंजाब कांग्रेस

रेखा/गोविन्द सलोता  
नई दिल्ली, 30 अक्टूबर. अमेरिकी राष्ट्रपति बराक ओबामा को अपनी अमृतसर यात्रा पंजाब कांग्रेस और अकालियों की आपसी खींचा तानियों के कारण रद्द करनी पड़ी है. दोनों ही पार्टियाँ ओबामा की स्वर्ण मंदिर की यात्रा का लाभ एक दुसरे को नहीं लेने-देना चाहती. सिर ढकने की अनिच्छा की अटकलों के उलट ओबामा प्रधानमंत्री मनमोहन सिंह को खुश करने के लिए स्वर्ण मंदिर जाने को लेकर बेहद उत्सुक थे. सप्रंग नेतृत्व से लेकर प्रधानमंत्री कार्यालय तक पंजाब कांग्रेस ने ओबामा की यात्रा टलवाने के लिए सारे तीर छोड़ दिए. इसकी वजह अमेरिकी राष्ट्रपति का विरोध नहीं, बल्कि स्वर्ण मंदिर में होने वाले कार्यक्रमों में अकाल तख़्त के लोगों के अलावा मुख्यमंत्री प्रकाश सिंह बादल और उप मुख्यमंत्री सुखबीर सिंह के छाए रहने का डर है.


पंजाब कांग्रेस के नेताओं का कहना है कि उन्हें भी प्रोटोकोल का हिस्सा बनाया जाना चाहिए, ताकि स्वर्ण मंदिर प्रांगन में ओबामा के साथ-साथ उनकी उपस्थिति भी प्रमुखता से देश-विदेश में दिखाई दे. उनका यह भी कहना है कि अगर ऐसा नहीं होगा तो ओबामा के इस दौरे का सियासी फायदा अकालियों को भी मिलेगा. इस बार व्हाइट हाउस ने खुद अमृतसर यात्रा की इच्छा जताई थी इसलिए पंजाब तर्कों से परेशान पीएमओ और विदेश मंत्रालय ने बीच का रास्ता निकालने के लिए विदेश राज्यमंत्री प्रणीत कौर को कांग्रेस के चेहरे के रूप में ओबामा के साथ दिखने का प्रस्ताव दिया.