Tuesday, 9 August 2011

माह-ए-रमजान

माह-ए-रमजान में अल्लाह के हुक्म का ज्यादा सख्ती से पालन किया जाता है। हदीस शरीफ में आया है कि 'हुजूर (सल्ल) ने फरमाया कि लोग भलाई पर रहेंगे, जब तक कि वह अफ्तार करने में जल्दी करते रहेंगे।'

रोजे का मकसद आदमी को अल्लाह की मर्जी का पालन करने वाला बनाना है, आदमी को तकलीफ देना नहीं। जब उसका हुक्म था खाना-पीना छोड़ो तो छोड़ दिया। अफ्तार के वक्त हुक्म है कि खाना-पीना शुरू कर दो फिर देर करने का मतलब यह है कि हुक्म को मानने में आनाकानी हो रही है। इसलिए फौरन्‌ खाना-पीना शुरू करके अल्लाह को खुश करके रोजे की रूह तक पहुंच सकते हैं।

सारी बात का मकसद यह है कि अपनी मर्जी न चलाकर अपने अल्लाह की मर्जी अपने ऊपर चलने देना चाहिए।

 
 
आदमी के दिल में यह बात आ सकती है कि अधिक देर तक खाना-पीना छोड़ने से ज्यादा सवाब मिलेगा, मगर यहां बताया जा रहा है कि जल्दी अफ्तार करने में ही भलाई है। देर से अफ्तार करने से तो उल्टी अल्लाह की नाराजगी है।

रमजान के तीसों दिन अल्लाह की मर्जी के मुताबिक अपने आप को ढालने की ट्रेनिंग से ही इंसान इस काबिल होता है कि अपने मन पर कंट्रोल करके अपने हर काम को अल्लाह की मर्जी के मुताबिक अंजाम दे।

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