जो संकल्प लिया गया हो, उसके बारे में अपने दोस्तों तथा रिश्तेदारों को भी बताना जरूरी है। इससे फायदा यह होगा कि आप संकल्प पूर्ण करने में जरा भी कमजोर या निष्क्रिय दिखाई दिए तो आपके दोस्त व रिश्तेदार आपको आपके संकल्प की याद दिला देंगे।
कई लोगों को लगता है कि जिंदगी बहुत छोटी है, इसमें कई बड़े काम करने हैं। यह सही है कि जीवन बहुत छोटा है, लेकिन यह सोच कतई उचित नहीं है कि आप एकसाथ कई संकल्प कर लें या कामों की लाइन लगा दें। मतलब यही कि आप कई संकल्प एकसाथ न लें। ऐसा करना अपनी क्षमताओं को बहुत ज्यादा आंकने से भी हो सकता है। इसलिए जरूरी है कि ठोक-बजाकर वही संकल्प लें, जिसे पूरा करना संभव हो।
अक्सर देखा जाता है कि देखा-देखी या किसी के कहने में आकर भी संकल्प ले लिए जाते हैं। ऐसे संकल्पों की कोई ठोस जमीन नहीं होती। नतीजतन संकल्प का कोई मतलब नहीं रह जाता। इससे बेहतर है कि अपनी रुचि, इच्छा तथा तैयारी हो तभी संकल्प लें। हरेक व्यक्ति की क्षमता, सोच, उत्साह, जोश, प्रवृत्ति, प्रकृति आदि अलग-अलग होते हैं। इसलिए अपने व्यक्तित्व को जाँचकर संकल्प लें।
जो संकल्प लिया गया हो उसके बारे में अपने दोस्तों तथा रिश्तेदारों को भी बताना जरूरी है। इससे फायदा यह होगा कि आप संकल्प पूर्ण करने में जरा भी कमजोर या निष्क्रिय दिखाई दिए तो आपके दोस्त व रिश्तेदार आपको आपके संकल्प की याद दिला देंगे।
बड़े काम तभी संभव हो पाते हैं, जब उन्हें पूरा करने में हम पूरी दृढ़ता के साथ पूरी शक्ति, उमंग, जोश तथा ऊर्जा के साथ लग जाते हैं। यदि हमारी मनःस्थिति ढुलमुल रही या हम 'हां-ना' के जाल में फंसे रहे तो एक कदम भी आगे नहीं बढ़ा सकते। काम छोटा हो या बड़ा, उसे पूरा करने के लिए सकारात्मक सोच के साथ आगे बढ़ना चाहिए।
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जीवन को अर्थवान बनाने के लिए कई लोग तरह-तरह के संकल्प लेते हैं। इससे उनके जीवन का लक्ष्य तय होता है। प्रसिद्ध विचारक स्वेट मॉर्डेन ने अपनी पुस्तक में लिखा है,'ऐसा व्यक्ति कठिनाई से मिलता है, जो विश्वासपूर्वक यह कह सके कि मैं करूंगा। जो कार्य मुझे करना चाहिए मैं उसे करता हूं, जो कार्य मैं कर सकता हूं, वह मुझे करना चाहिए। भगवान की कृपा से मैं ऐसे कार्य अवश्य पूरे करूंगा। मैंने परम पिता परमेश्वर के सम्मुख प्रण लिया है कि मैं इसे अवश्य पूर्ण करूंगा।' व्यक्ति इस आधार पर अपना संकल्प तय कर ले तो उसमें जो आत्मविश्वास एवं दृढ़ता आएगी, उससे उसके संकल्प के पूरा होने में कोई संदेह नहीं रहेगा।
किसी भी संकल्प को लेने से पहले सबसे ज्यादा जरूरी है कि बिलकुल शांत तथा एकाग्र हो जाएं। फिर अपनी तमाम शक्तियों या क्षमताओं तथा कमजोरियों का पूरा आकलन करें। इसमें अपनी रुचि को सर्वोच्च स्थान दें। ऐसा करने से आपको अपनी सीमाओं का पता चल जाएगा और आप अपनी हद में रहकर संकल्प ले सकेंगे।
यदि ऐसा नहीं किया गया तो संकल्प अति उत्साह या आवेग में लिया हुआ होगा, जिसका ज्वार बहुत जल्दी उतर जाता है। ऐसे में व्यक्ति का संकल्प भी धरा-का-धरा रह जाता है। इसका असर इतना विपरीत होता है कि व्यक्ति निराश एवं हताश हो जाता है, जिससे उसके दूसरे कार्य भी बिगड़ जाते हैं। उसका संपूर्ण व्यक्तित्व नकारात्मक दिशा में जा सकता है।
कई लोगों को लगता है कि जिंदगी बहुत छोटी है, इसमें कई बड़े काम करने हैं। यह सही है कि जीवन बहुत छोटा है, लेकिन यह सोच कतई उचित नहीं है कि आप एकसाथ कई संकल्प कर लें या कामों की लाइन लगा दें। मतलब यही कि आप कई संकल्प एकसाथ न लें। ऐसा करना अपनी क्षमताओं को बहुत ज्यादा आंकने से भी हो सकता है। इसलिए जरूरी है कि ठोक-बजाकर वही संकल्प लें, जिसे पूरा करना संभव हो।
अक्सर देखा जाता है कि देखा-देखी या किसी के कहने में आकर भी संकल्प ले लिए जाते हैं। ऐसे संकल्पों की कोई ठोस जमीन नहीं होती। नतीजतन संकल्प का कोई मतलब नहीं रह जाता। इससे बेहतर है कि अपनी रुचि, इच्छा तथा तैयारी हो तभी संकल्प लें। हरेक व्यक्ति की क्षमता, सोच, उत्साह, जोश, प्रवृत्ति, प्रकृति आदि अलग-अलग होते हैं। इसलिए अपने व्यक्तित्व को जाँचकर संकल्प लें।
जो संकल्प लिया गया हो उसके बारे में अपने दोस्तों तथा रिश्तेदारों को भी बताना जरूरी है। इससे फायदा यह होगा कि आप संकल्प पूर्ण करने में जरा भी कमजोर या निष्क्रिय दिखाई दिए तो आपके दोस्त व रिश्तेदार आपको आपके संकल्प की याद दिला देंगे।
बड़े काम तभी संभव हो पाते हैं, जब उन्हें पूरा करने में हम पूरी दृढ़ता के साथ पूरी शक्ति, उमंग, जोश तथा ऊर्जा के साथ लग जाते हैं। यदि हमारी मनःस्थिति ढुलमुल रही या हम 'हां-ना' के जाल में फंसे रहे तो एक कदम भी आगे नहीं बढ़ा सकते। काम छोटा हो या बड़ा, उसे पूरा करने के लिए सकारात्मक सोच के साथ आगे बढ़ना चाहिए।
किसी भी संकल्प को लेने से पहले सबसे ज्यादा जरूरी है कि बिलकुल शांत तथा एकाग्र हो जाएं। फिर अपनी तमाम शक्तियों या क्षमताओं तथा कमजोरियों का पूरा आकलन करें। इसमें अपनी रुचि को सर्वोच्च स्थान दें। ऐसा करने से आपको अपनी सीमाओं का पता चल जाएगा और आप अपनी हद में रहकर संकल्प ले सकेंगे।
यदि ऐसा नहीं किया गया तो संकल्प अति उत्साह या आवेग में लिया हुआ होगा, जिसका ज्वार बहुत जल्दी उतर जाता है। ऐसे में व्यक्ति का संकल्प भी धरा-का-धरा रह जाता है। इसका असर इतना विपरीत होता है कि व्यक्ति निराश एवं हताश हो जाता है, जिससे उसके दूसरे कार्य भी बिगड़ जाते हैं। उसका संपूर्ण व्यक्तित्व नकारात्मक दिशा में जा सकता है।
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