Tuesday, 24 May 2011

जनसंख्या बढ़ोतरी, कहीं बहुत कम कहीं बहुत ज्यादा


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हर सेकंड औसतन 2.6 बच्चे पैदा होते हैं, हर मिनट 158, हर दिन 2 लाख 28 हजार 155 लोग दुनिया में पैदा होते हैं। हर सेंकड दुनिया की जनसंख्या बढ़ रही है। कुल 6 अरब 96 करोड़ से ज्यादा लोग हैं। और हर टिक टिक के साथ बढ़ रहे हैं। 

संयुक्त राष्ट्र की रिपोर्ट के मुताबिक 2100 में दुनिया की जनसंख्या दस अरब हो जाएगी। 1950 से अब तक दुनिया की जनसंख्या का बढ़ना आधा हो गया है। मतलब पहले हर महिला के औसतन पांच बच्चे होते थे, लेकिन अब यह संख्या आधी हो गई है। इसका मुख्य कारण परिवार नियोजन है।

संयुक्त राष्ट्र जनसंख्या विभाग के अध्यक्ष थोमास बुइटनर कहते हैं, 'जो जनसंख्या आज हम देख रहे हैं वह सुधार भरे कदम का परिणाम है। अगर 1950 के कदम नहीं बदले होते तो आज जनसंख्या के आंकड़े अलग होते।'

अच्छा अच्छा नहीं : हालांकि तस्वीर का सिर्फ एक यही अच्छा पहलू होता तो बहुत ही बढ़िया था, लेकिन ऐसा है नहीं। क्योंकि अमीर देशों में जनसंख्या घट रही है और गरीब देशों में लगातार बढ़ रही है। जनसंख्या के बढ़ने की गति अगर इसी तेजी से जारी रही तो इस सदी के आखिर में ही धरती पर 27 अरब लोग हो जाएंगे। अभी से चार गुना ज्यादा। लेकिन नाइजीरिया में थ्योरिटिकली दो अरब ज्यादा होंगे तो जर्मनी की जनसंख्या आधी हो जाएगी और चीन में 50 करोड़ लोग कम हो जाएंगे।

संयुक्त राष्ट्र के विशेषज्ञ एक और मामले पर नजर डालते हैं, 'ज्यादा से ज्यादा लोगों को परिवार नियोजन की सुविधा मिल रही रही और मत्यु दर कम हो गई है। विकास के सभी काम, परिवार नियोजन की कोशिशें मां और बच्चों के मरने की दर कम करती है।' 

इन आंकड़ों के मुताबिक गरीब से गरीब देशों में भी प्रति महिला बच्चों की संख्या कम हो जाएगी। और इसलिए 2100 तक दुनिया में करीब दस अरब लोगों के धरती पर रहने का अनुमान संयुक्त राष्ट्र ने लगाया है।

असमान जनसंख्या बढ़ोतरी : यूएन ने अनुमान लगाया है कि अगर प्रति महिला औसतन एक दशमलव छह बच्चे पैदा होते हैं तो जनसंख्या 16 अरब तक पहुंच जाएगी। यह सबसे ज्यादा वाला अनुमान है और एकदम कम होने की स्थिति में दुनिया की जनसंख्या घट कर छह अरब ही रह जाएगी जो आज की संख्या से भी कम होगी। दो हजार आठ में भी संयुक्त राष्ट्र ने इसी तरह का अनुमान लगाया था जिसे उसे ठीक करना पड़ा था।

जर्मन जनसंख्या संस्था (वेल्ट बेफ्योल्करुंग प्रतिष्ठान) की प्रमुख रेनाटे बैहर बताती हैं, 'दो हजार पचास में बीस करोड़ जनसंख्या बढ़ने के सुधार को इसलिए करना पड़ा क्योंकि पैदा होने वाले बच्चों की संख्या जितना कम होने का अनुमान था वैसा आखिरी दो साल में हुआ नहीं। यह एक चेतावनी है। उम्मीद करते हैं कि नेता इस चेतावनी को सुनेंगे और इस पर कार्रवाई करेंगे।'

इसके लिए रेनाटे बैहर थाईलैंड और केन्या का उदाहरण देती हैं, 'आप अगर आज केन्या और थाईलैंड की ओर देखें तो पता चलेगा कि दोनों में जमीन आसमान का फर्क है। केन्या में जनसंख्या चार गुना बढ़ी है जबकि थाईलैंड में सिर्फ दो गुना।'

इसका कारण सिर्फ एक ही है कि 1970 के दशक में थाईलैंड ने दो बच्चे प्रति परिवार की नीति अपनाई और इसे आगे बढ़ाया। अब तो केन्या भी इसे समझ गया है कि परिवार की खुशहाली कम बच्चे ही जरूरी हैं, लेकिन दुनिया के कई देश अभी भी नहीं समझे हैं।

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