Tuesday, 24 May 2011

प्याज, तेल और नारियल से जूझता दक्षिण एशिया

दक्षिण एशिया में खाद्य पदार्थों और राजनीति का पुराना रिश्ता रहा है। इन दिनों भारत में प्याज, श्रीलंका में नारियल और बांग्लादेश में कुकिंग तेल को लेकर जमकर राजनीति हो रही है और सरकारों के लिए मुश्किलें खड़ी हो रही हैं।

प्याज के बिना भारत में कोई भूखा नहीं मेरगा, लेकिन खाने में वैसा स्वाद नहीं आएगा। चटपटे खाने के शौकीन भारतीयों को यह मंजूर नहीं, इसीलिए प्याज की आसमान छूती कीमतों के कारण लोग सरकार से नाराज हैं। प्याज को लहसुन और अदरक के साथ बहुत से भारतीय खानों का आधार समझा जाता है। इसी तरह श्रीलंका में नारियल और उसका दूध खाने में स्वाद का खास तड़का लगाता है।

भारत में प्याज की मौजूदा किल्लत के देखते हुए उसके दाम लगभग तीन गुने होकर 80 रुपए प्रति किलो तक पहुँच गए हैं। इसके लिए जमाखोरी और सरकार के नकारेपन को जिम्मेदार बताया जा रहा है। बाजार में प्याज नहीं आ रहा है और कीमतें लगातार बढ़ रही हैं।

प्याज पर भारत में खूब राजनीति होती रही है। 1998 में दिल्ली की बीजेपी सरकार को प्याज की कीमतों ने सत्ता से बाहर करा दिया था। इससे पहले जनवरी 1980 में इंदिरा गाँधी प्याज के बढ़ते दामों का फायदा उठाकर सरकार में लौटीं।

इसीलिए केंद्र की मौजूदा सरकार भी खाने पीने की चीजों के बढ़ते दामों की वजह से परेशान है। प्याज की कमी को दूर करने के लिए खुद प्रधानमंत्री मनमोहनसिंह को उतरना पड़ा है। सरकार ने प्याज के निर्यात पर रोक लगा दी है, उस पर लगने वाले आयात शुल्क को खत्म कर दिया है और पाकिस्तान से प्याज भी मँगाया है, लेकिन दक्षिण दिल्ली के अवनीश सैंगर जैसे आम लोगों को प्याज अब भी अपने बजट से बाहर दिख रही है और वे सरकार से नाराज हैं।

सैंगर का कहना है कि बेशक इससे मैं नाराज हूँ, लेकिन मैं कर क्या सकता हूँ। कोई कुछ नहीं कर सकता। वहीं सुमन गुप्ता कहती हैं कि कुछ प्याज और टमाटर तो खरीदना ही पड़ेगा वरना खाने में कोई स्वाद नहीं आएगा।

श्रीलंका में सरकार को नारयिल की किल्लत को दूर करने लिए मशक्कत करनी पड़ रही है। सरकार ने देश में नारियल के पेड़ों को गिराने पर पाबंदी लगा दी और पहली बार भारत और मलेशिया से नारियल का आयात किया जा रहा है, जिस तरह भारत में प्याज के बिना खाना अधूरा है, उसी तरह श्रीलंकाई व्यंजनों के लिए नारयिल बेहद जरूरी है। 1977 में श्रीलंका की वामपंथी सरकार को खाद्य पदार्थों के बढ़ते दामों की वजह से जनता ने सत्ता से बाहर कर दिया। 

पिछले हफ्ते सरकार ने सरकारी स्टोरों में एक नारियल के दाम 30 रुपए तय कर दिए, लेकिन जल्द ही सब नारियल बिक गए और फिर ब्लैक मार्केट में एक नारियल दोगुने से भी ज्यादा दामों में लोगों को खरीदना पड़ा। वैसे पारंपरिक तौर पर चाय और रबड़ के बाद नारियल श्रीलंका का अहम निर्यातक है, लेकिन देश में रिहायशी और अन्य निर्माण गतिविधियों के कारण के नारियल के पेड़ों की संख्या घट रही है, जिससे उसकी किल्लत होती जा रही है।

उधर बांग्लादेश में कुकिंग तेल के दाम लगातार बढ़ रहे हैं। खासकर ज्यादातर घरों में इस्तेमाल होने वाले ताड़ के तेल के दामों ने लोगों को परेशान कर रखा है। सरकार इसके लिए कारोबारियों को जिम्मेदार बता रही है। उन पर सरकार के दिशानिर्देशों की अनदेखी के आरोप लग रहे हैं। वाणिज्य मंत्री फारूक खान ने कहा कि इस देश में अराजकता नहीं है। आप अपनी मर्जी से चीजों के दाम तय नहीं कर सकते। वहीं दूसरों लोगों का कहना है कि सरकार तेल के दामों को नियंत्रित करने के लिए पर्याप्त कदम नहीं उठा रही है।

नवंबर में जब एक ही दिन में खाने के तेल के दाम 20 प्रतिशत बढ़ गए तो ढाका के हाईकोर्ट ने सरकार से इसकी वजह पूछी। बांग्लादेश भी उन देशों में शामिल हैं जो 2008 में खाद्य पदार्थों के दामों हुई वैश्विक वृद्धि के कारण अशांत रहे। हजारों लोगों ने राजधानी ढाका की सड़कों पर दंगे किए।



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