Sunday, 1 January 2012

पुलिस और ई टीवी के गठजोड़ से नाराज पत्रकारों ने नहीं खेला मैच

रविवार को नीमच जिले के आला पुलिस अधिकारियों और शहर के पत्रकारों के बीच एक मैत्री क्रिकेट मैच का आयोजन पुलिस के खेल विभाग ने रखा था। पर, ये मैच हो ही नहीं सका। शहर के पत्रकारों ने मैच खेलने से ही इनकार कर दिया। पुलिस अधिकारियों को जब पत्रकारों के रूख का पता चला तो उनके होश उड़ गये। ऐसा क्यों हुआ? इसको लेकर जो कुछ सामने आया है उससे लोग चौंके हैं।

पुलिस के एक आला अधिकारी ने ई टीवी के ब्यूरो प्रमुख का नाम लेकर ये कह दिया था कि पत्रकारों की टीम उसी के नेतृत्व में खेलेगी। इस पर दूसरे पत्रकार भड़क गये और कहने लगे, बहुत हो गया अब ई टीवी और पुलिस का नापाक गठजोड़! अब इसे बर्दाश्त नहीं किया जायेगा। पत्रकार गुस्सा थे कि आखिर क्यों पुलिस ही ये तय करने में जुटी थी कि पत्रकारों की टीम का नेतृत्व ई टीवी वाला ही करेगा। देखते-देखते कई पत्रकारों ने पुलिस के खेल अधिकारी श्री सलाम को मैच खेलने से इनकार कर दिया। तब पुलिस में हलचल मची। आला अधिकारियों को भी मालूम पड़ा कि आखिर हो क्या रहा है। पत्रकार पिछले लंबे अरसे से पुलिस के निचले स्तर के अधिकारियों के साथ ई टीवी के स्टाफरों की नापाक जुगलबंदी से हो रही लूटपाट के किस्से सुनते और देखते आ रहे थे। वे देख रहे थे कि एक लंबे अरसे से ई टीवी कैमरा मैन, जो एक नहीं अनेक होते हैं, वे अक्सर दिन भर पुलिस थानों में ही मंडराते हैं। कोई शिकायतकर्ता आया नहीं कि उसकी कथा कहानी सुनकर वो जिसके खिलाफ शिकायत करने आया है, उसे ई टीवी का भोंगला लेकर चमकाने पहुंच जाते हैं।

पुलिस के यहां से कार्रवाई बाद में होती है पर, ई टीवी और उन्हीं के दफ्तर में चल रही मोबाइल ब्रेकिंग न्यूज एजेंसी वाइस आफ एमपी का आपरेशन पहले ही चालू हो जाता है। ये ही हाल अफीम से जुड़े मामलों में नजर आता है। पुलिस जब माल पकड़ती है तब उसे कागजात तैयार करने और बरामद माल की मात्रा बताने में दो से चार घंटे लग पाते है, पर ई टीवी का भोंगला लेकर अपराधी किस्म के लोग भी वहां पहुंच जाते हैं और लोगों की बाईट लेने का उपक्रम करते नजर आने लगते हैं। पुलिस अफीम के मामलों में अक्सर सेटिंग करती है ऐसे में सेटिंग से पहले ही चैनल वाले पहुंच जाए तो सारा गुड़़गोबर हो जाता है। ऐसे में पुलिस वाले इनसे चमकने लगे, तो ये माथे बैठते नजर आने लगे। थानों में दिन भर ये मंडराये और बाद में बड़े अधिकारियों के चेंबर में भी ये ठसे नजर आये। हालात ऐसे बने कि पुलिस वाले इनके ब्लैकमेल के शिकार होने लगे। अफीम जब्‍ती के मामले में मौके पर भोंगला लेकर नहीं आने और जब्‍ती का समाचार ब्रेकिंग न्यूज में डालने पर पुलिस वाले मोटे-मोटे लिफाफे इन्हें देने को मजबूर होने लगे। जब पुलिस वाले बिलकुल ही डरते नजर आने लगे तब तो ई टीवी वाले एक कदम और आगे बढ़ते नजर आने लगे।

अब पुलिस वालों को ये निर्देश दिये जाने लगे कि वे दफ्तर पर आये और हाजिरी बजायें। अपराधियों और प्रापर्टी दलालों का जमघट ई टीवी के ब्यूरो दफ्तर पर नजर आने लगा और पुलिस वाले भी वहीं बैठकर सौदे-सूद और तोड़-बट्टे करने लगे। ये सब हालात पत्रकारों की निगाहों में थे। पर, एक मामला ऐसा भी हो गया जिसमें ये एक पत्रकार को ही पुलिस के माध्यम से चमकाने से नहीं चूके। सुबह के अखबार भास्कर की मार्केटिंग एजेंसी चलाने वाला भी ई टीवी वालों की शरण में जाकर वो भी एक चैनल का भोंगला ठोंक लाया। उसका भास्कर के स्थानीय एजेंट शांतिलाल अहीर से कोई छोटा मोटा तनाव हो गया। बस, फिर क्या था। पहुंच गया भास्कर के एजेंसी दफ्तर पर पुलिस का दस्ता। वो तो दफ्तर भी बंद था और उस पर भास्कर का बोर्ड भी लगा था तब पुलिस वालों को भी समझ आयी कि किस तरह उनको ही उलझाया जा रहा है। बाद में शांतिलाल अहीर कुछ लोगों को लेकर पुलिस के आला अधिकारियों के पास ज्ञापन लेकर पहुंचा और कहा, किस तरह उसके खिलाफ साजिश रची गई। साफ तौर पर उस साजिशकर्ता का नाम लिखा गया। हद तो तब हो गई सुबह 11.55 पर आवेदन दिया गया और 12.10 पर उस आवेदन की कापी पुलिस के यहां से निकलकर ई टीवी के दफ्तर पर पहुंच गई थी और वहां वो साजिशकर्ता कापी हाथ में लेकर अट्टाहास कर रहा था कि क्या कर लिया शांतिलाल ने। वो कह रहा था पुलिस हमारा कुछ नहीं बिगाड़ सकती। हमारा अपना एक सिडिंकेट है जिससे पुलिस का गठजोड़ है।

भास्कर के सीधे-सादे एजेंट शांतिलाल को ही फर्जी मामले में फंसाने की साजिश का जब खुलासा हुआ तो शहर के पत्रकारों में पुलिस और ई टीवी के इस नापाक गठजोड़ के खिलाफ गुस्सा और गहरा हो गया जो अब फट पड़ा है। ई टीवी की अगुवाई में मैच न खेलने का फैसला शहर के पत्रकारों का शहर भर में चर्चा का विषय बना है। इधर, मनासा में भी ई टीवी का भोंगला एक ऐसा आदमी लेकर घूमता दिखाई दे रहा है जो पहले कभी बैंक की डकैती डालकर तिजोरी ही चुरा लाने का अपराधी बनकर जेल काट आया है। ये आदमी अपराधिक प्रवृत्ति के बांछड़ा समुदाय के लोगों की गतिविधियों को सहयोग करता है। चोरी का माल लाने ले जाने में अपनी प्रेस लिखी गाड़ी भी उन्हें मुहैया कराता है। ऐसे आदमी को ई टीवी का मनासा का स्ट्रिंगर बना दिये जाने से वहां भी पत्रकारों में ई टीवी के नीमच ब्यूरो के खिलाफ गुस्सा है। ई टीवी के नीमच ब्यूरो से शहर के पत्रकारों में गुस्से की एक वजह और भी है। ब्यूरो प्रमुख ने दो फर्जी पत्रकार संगठन खड़े करके उसकी अलग से दुकानदारी चालू कर रखी है। एक मालवा श्रमजीवी पत्रकार संघ के नाम से संगठन खड़ा किया गया है तो दूसरा मालवा मेवाड़ इलेक्‍ट्रानिक मीडिया पत्रकार संघ बनाया है। दोनों ही संगठनों में फर्जी और आपराधिक किस्म के पत्रकारों की भरमार की गई है। ऐसे लोग सट्टे की दुकान से लेकर मीट-मच्छी की दुकान तक चैनल का भोंगला लिये नजर आ जाते है। मनासा से भागकर आये दो कथित पत्रकार जिन पर लोगों को धमकाने के आपराधिक मुकदमे दर्ज हैं, वे भी नीमच में ई टीवी की शरण में आकर खुली गुण्डागर्दी कर रहे हैं।

दोनों फर्जी पत्रकार संगठनों के माध्यम से ई टीवी का नीमच ब्यूरो वास्तविकता में काम कर रहे पत्रकारों को भी अपमानित करता नजर आ रहा था। पर होता है कि एक दिन गुस्सा फट पड़ता है। काठ की हांडी फट जाती है। पत्रकारों का ई टीवी के साथ मैच न खेलने का फैसला तो कम से कम ये ही इबारत लिखता नजर आ रहा है। पुलिस वालों को भी समझ आ रही है कि जाने-अनजाने पत्रकारिता की आड़ में हम किस तरह एक गिरोह के हाथों का शिकार होने लगे थे। इस गिरोह के लोगों को लूटने-खसोटने और जमीनों पर बेजा कब्जा जमाने के इतने किस्से पसरे हैं, जिसकी कोई हद नहीं। कई सारे बेकसूर लोगों को बेवजह जेल के सिंकचों तक पहुंचा दिया है, ई टीवी नीमच ब्यूरो की अगुवाई में बने पत्रकार, पुलिस और अपराधिक तत्वों के इस सिडिंकेट ने। शहर में आपराधिक तत्वों से भय दिखाने का भी एक सोचा-समझा खेल खेलते भी ये लोग नजर आ रहे थे। कुछ हत्या जैसे मामलों में उलझे अपराधी जो इस गैंग में शरीक हैं, उन्हें सार्वजनिक रूप से ब्यूरो प्रमुख के धोक लगानी होती थी। चाहे फिर वे दिन में 6 बार ही सामने क्यों न आये। इससे ये गिरोह सामान्य लोगों पर अच्छा रूतबा जमाने में कामयाब होते थे। जो भी होता है, अच्छा ही होता है।

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