Monday, 22 August 2011

जन्माष्टमीयह एक प्रसिद्ध गीत है कि लोगों को जन्माष्टमी, प्रभु कृष्ण भगवान विष्णु के आठवें अवतार (अवतार) के जन्म की सालगिरह के अवसर पर गाते की है. यह धार्मिक त्योहार पूरे भारत में कृष्ण पक्ष की अष्टमी या Bhadon के महान भक्ति और उत्साह के साथ हिंदू कैलेंडर के अनुसार माह में आठवें दिन पर अगस्त / सितंबर के महीने में मनाया जाता है. जन्माष्टमी Gokulashtami, Krishnasthami, Srijayanti के रूप में भी जाना जाता है. Janmashtami.jpg जन्माष्टमी, मथुरा और वृंदावन के स्थानों पर जहां भगवान कृष्ण अपने बचपन बिताया था, सारी दुनिया में मशहूर हैं. दुनिया भर से भक्तों इन धर्मपरायण स्थानों पर आने के लिए Janmasthami का जश्न मनाने. इस शुभ अवसर पर मंदिरों और घरों का खूबसूरती से सजाया जाता है प्रबुद्ध. नाइट लंबे समय प्रार्थना की पेशकश कर रहे हैं और मंदिरों में धार्मिक भजन गाए जाते हैं. याजकों मंत्र पवित्र मंत्र और स्नान Panchamrit के साथ मूर्ति जो Gangajal (पवित्र गंगा नदी से पानी) शामिल हैं, दूध, घी (मक्खन), दही, और शहद एक शंख से इन सब डालने के लिये. इस स्नान के बाद शिशु कृष्ण (भी Balmukund रूप में जाना जाता) की मूर्ति को पालने में रखा गया है. भक्ति गीत और नृत्य उत्तर भारत में इस उत्सव के अवसर के उत्सव के निशान. विशेष रूप से वृन्दावन में मंदिरों के इस अवसर पर एक असाधारण और रंगीन उत्सव गवाह हैं. Raslila कृष्ण के जीवन की घटनाओं को विश्राम और राधा के लिए अपने प्यार को मनाने के लिए किया जाता है.

यह एक प्रसिद्ध गीत है कि लोगों को जन्माष्टमी, प्रभु कृष्ण भगवान विष्णु के आठवें अवतार (अवतार) के जन्म की सालगिरह के अवसर पर गाते की है. यह धार्मिक त्योहार पूरे भारत में कृष्ण पक्ष की अष्टमी या Bhadon के महान भक्ति और उत्साह के साथ हिंदू कैलेंडर के अनुसार माह में आठवें दिन पर अगस्त / सितंबर के महीने में मनाया जाता है. जन्माष्टमी Gokulashtami, Krishnasthami, Srijayanti के रूप में भी जाना जाता है.

जन्माष्टमी, मथुरा और वृंदावन के स्थानों पर जहां भगवान कृष्ण अपने बचपन बिताया था, सारी दुनिया में मशहूर हैं. दुनिया भर से भक्तों इन धर्मपरायण स्थानों पर आने के लिए Janmasthami का जश्न मनाने. इस शुभ अवसर पर मंदिरों और घरों का खूबसूरती से सजाया जाता है प्रबुद्ध. नाइट लंबे समय प्रार्थना की पेशकश कर रहे हैं और मंदिरों में धार्मिक भजन गाए जाते हैं. याजकों मंत्र पवित्र मंत्र और स्नान Panchamrit के साथ मूर्ति जो Gangajal (पवित्र गंगा नदी से पानी) शामिल हैं, दूध, घी (मक्खन), दही, और शहद एक शंख से इन सब डालने के लिये. इस स्नान के बाद शिशु कृष्ण (भी Balmukund रूप में जाना जाता) की मूर्ति को पालने में रखा गया है. भक्ति गीत और नृत्य उत्तर भारत में इस उत्सव के अवसर के उत्सव के निशान.

विशेष रूप से वृन्दावन में मंदिरों के इस अवसर पर एक असाधारण और रंगीन उत्सव गवाह हैं. Raslila कृष्ण के जीवन की घटनाओं को विश्राम और राधा के लिए अपने प्यार को मनाने के लिए किया जाता है.

Thursday, 11 August 2011

मोटापे से परेशान हैं तो "बाइट काउंटर" की मदद लें


अगर आप खुद को ज्यादा खाने से रोक नहीं पाते हैं और मोटे होते जा रहे हैं तो चिंता की कोई बात नहीं। क्योंकि वैज्ञानिकों ने एक ऎसा डिवाइस विकसित करने का दावा किया है कि जो अधिक भोजन करने वालों की निगरानी करेगा और उन्हें रोकेगा।

यही नही यह डिवाइस यह भी बताएगा कि आपको एक दिन में कितनी कैलोरी की जरूरत है। इस डिवाइस की मदद से लोग अपने लिए भोजन की मात्रा तय कर सकते हैं।


इस डिवाइस का नाम "बाइट काउंटर" रखा गया है। यह घडी की तरह होगा, जिसे भोजन करते समय कलाई में बांधा जा सकेगा।

वजन घटता है।


आमतौर पर छोटी प्लेट-कटोरी में बच्चों को खाना खिलाया जाता है क्योंकि बच्चे की खुराक कम होती है। लेकिन शोधकर्ताओं का कहना है कि अगर बड़े लोग भी छोटी प्लेट-कटोरी में खाएं तो तो इससे उनका वजन घटता है।


अमेरिका की कॉर्नेल युनिवर्सिटी के मनोचिकित्सक ब्रायन वैनसिंक ने वजन घटाने का नया तरीका खोज निकाला है। ब्रायन का कहना है कि अधिकांश लोग इस बात पर ज्यादा ध्यान देते हैं कि हम कितना खा रहे हैं।


इसलिए ब़डे आकार के प्लेट की जगह सलाद के लिए उपयोग में लाई जाने वाली प्लेट में भोजन करें। क्योंाकि इस प्ले्ट में आप ज्यादा खाना नहीं परोस सकते। इसके कारण आप कम खाना खाते हैं इससे भी वजन घटाने में मदद मिलेगी।
वहीं एनर्जी ड्रिंक पीने के लिए भी छोटे ग्लास का उपयोग करें इससे वजन नियंत्रित रहेगा।

प्रेग्नेंसी


 
एक महिला के जीवन में प्रेग्नेंसी से खूबसूरत अहसास और कोई नहीं होता। मगर, इस खूबसूरत अहसास के साथ एक बदसूरत चीज भी जुड़ी रहती है, वो है-स्ट्रेचमार्क्स। स्ट्रेचमार्क्‍स का अर्थ प्रेग्नेंसी के बाद कमर और पेट की त्वचा मुर्झाना और ढीली-सी पड़ जाना होता है।

इससे आपका व्यक्तित्व प्रभावित होता है। यह जरूरी नहीं है कि स्ट्रेचमार्क्‍स की समस्या हर गर्भवती महिला को हो, मगर जिन महिलाओं को यह परेशानी होती है। उन्हें अपने कपड़े पहनने के तरीकों तक में बदलाव लाना पड़ता है। तो जानिए स्ट्रेचमार्क्‍स और उससे छुटकारा पाने के तरीकों के बारे में...

स्ट्रेचमार्क्स के कारण

- प्रेग्नेंसी के दौरान त्वचा जब ज्यादा खिंचती है तो स्ट्रेचमार्क्‍स बनने लगते हैं। ज्यादातर महिलाओं को गर्भावस्था की तिमाही में स्ट्रेचमार्क्‍स होते हैं। स्ट्रेचमार्क्‍स होने का कारण है उन टिश्यू का फट जाना जो कि त्वचा को खिंचने में मदद करते हैं।

- स्ट्रेचमार्क्‍स होना इस बात पर भी निर्भर करता है कि आपकी त्वचा में खिंचने की कितनी क्षमता है। अगर आप यह पता लगाना चाहती हैं कि आपको स्ट्रेचमार्क्‍स होंगे या नहीं तो अपनी मां से पूछें कि उन्हें हुए थे या नहीं। क्योंकि स्ट्रेचमार्क्‍स आनुवांशिक होते हैं।

- कई बार हार्मोनक इंबैलेंस की वजह से भी स्ट्रेचमार्क्‍स होने लगते हैं। तो कई महिलाओं को वातावरण में आए बदलावों के चलते रिएक्शन के रूप मे स्ट्रेचमाक्र्स होने लगते हैं।

- जिन महिलाओं की त्वचा रूखी व बेजान होती है, उन्हें स्ट्रेचमार्क्‍स होने के चांसेस ज्यादा होते हैं।

स्ट्रेचमार्क्‍स से बचाव

- ज्यादातर महिलाओं का मानना होता है कि क्रीम और लोशन का प्रयोग करके वे स्ट्रेचमार्क्‍स से बचाव कर सकती हैं। मगर इनके अलावा भी आजकल बाजार में कई ऐसे प्रोडक्ट्स मौजूद हैं, जिनसे आपकी त्वचा अच्छे से मॉश्चराइज होती है।

- जब आप स्ट्रेचमार्क्‍स क्रीम या लोशन अपने पेट पर लगा रही होती हैं तो उस समय आप अप्रत्यक्ष रूप से अपने बेबी को मसाज दे रही होती हैं।

- स्ट्रेचमार्क्‍स से बचने का सबसे आसान तरीका है डॉक्टर द्वारा सुझाया गया वजन बढ़ाना। आमतौर पर डॉक्टर्स महिलाओं को 10-12 किलो वजन बढ़ाने के लिए सलाह देते हैं। मगर, कई महिलाएं ज्यादा वजन बढ़ा लेती हैं, जिससे स्ट्रेचमार्क्‍स बनते हैं।

कैसे हटाएं स्ट्रेचमार्क्‍स

- स्ट्रेचमार्क्‍स होने पर ज्यादा परेशान नहीं होना चाहिए क्योंकि समय के साथ स्ट्रेचमार्क्‍स फेड होने लगते हैं। डिलेवरी के 12-14 महीनों के बाद ये कम हो जाते हैं।

- अगर आपके स्ट्रेचमार्क्‍स हद से ज्यादा बदसूरत लगते हैं, तो आपको डर्मेटोलॉजिस्ट से कंसल्ट करना चाहिए। आप डिलेवरी के तुरंत बाद ही डॉक्टर से कंसल्ट करें अन्यथा ये स्ट्रेचमार्क्‍स को साफ नहीं कर पाते।

- कई महिलाओं को स्तनपान करवाने से स्तन पर स्ट्रेचमार्क्‍स होने लगते हैं और वे इनसे निजात पाने के लिए किसी भी क्रीम का इस्तेमाल करने लगती हैं। यह गलत है, इससे फीडिंग पर प्रभाव पड़ सकता है।

- अगर कई लोशन और इलाज के बाद भी आपके स्ट्रेचमार्क्‍स ठीक नहीं हो रहे हों तो आप लेजर ट्रीटमेंट करवाएं। मगर, इससे पहले डॉक्टर्स से कंसल्ट जरूर करें।

घरेलू उपचार

- स्ट्रेचमार्क्स से छुटकारा पाने के लिए अगर आप घरेलू उपचार अपनाना चाहती हैं तो हर रोज एक्सरसाइज करें। खासकर बैली (पेट) एक्सरसाइज, ताकि पेट और कमर के आसपास की मांसपेशियां फिट रहें।

- ऐसे आहार का सेवन करें जिसमें विटामिन ई और विटामिन सी भरपूर मात्रा में हों क्योंकि ये टिश्यू और कोशिका निर्माण की प्रक्रिया को तेज करते हैं।

- स्ट्रेचमार्क्‍स वाले हिस्से में हर रोज विटामिन ई युक्त तेल से अच्छी तरह मसाज करें।

कढी खाने से सूजन घट जाती है


 
अगर आप गठिया या अर्थराइटिश के दर्द से परेशान हैं तो अपने खाने का मेन्यू बदलें। शोधकर्ताओं ने अध्ययन में पाया है कि कढी जोडों के दर्द में भी राहत देती है। कढी खाने से सूजन घट जाती है और कोहनी दुरूस्त हो जाती है।

लंदन के नॉटिंघम विश्वद्यालय और जर्मनी के मैक्समिलियंस युनिवर्सिटी के अनुसंधानकर्ताओं ने भारतीय कढियों के एक महत्वपूर्ण तत्व करकूमिन की शिनाख्त की है जो जोड में स्त्रायु सूजन को रोकता है।

करकूमिन हल्दी से बनती है। इसका इस्तेमाल स्त्रायु बीमारी के दौरान सूजन फैलाने वाली जैविक यांत्रिकी को कम करने के लिए किया जा सकता है। शोधकर्ताओं का कहना है कि इस अध्ययन से जोड के दर्द के लिए इलाज का मार्ग प्रशस्त हो सकता है।

ईमानदारी

ईमानदारी अभी जिंदा है, इसका प्रमाण उस समय देखने को मिला जब रिफाइनरी में रहने वाले एक व्यक्ति ने सड़क पर रुपयों से भरा बैग मिलने पर उसे संबंधित व्यक्ति को वापस लौटा दिया।

उसने बैग में रखे दस्तावेजों पर लिखे नंबर पर फोन कर बैग वापस लौटाया। बैग में एक लाख से ज्यादा रुपए, मोबाइल और जरूरी कागजात थे। जानकारी के अनुसार कृष्णचंद निवासी रिफाइनरी को गुरुवार को सड़क पर एक बैग पड़ा मिला। उसने बैग खोलकर देखा तो उसमें एक लाख पच्चीस हजार रुपए, तीन एटीएम कार्ड और दो मोबाइल मौजूद थे। उसने ईमानदारी दिखाते हुए मोबाइल फोन से बैग के मालिक डॉ. एसके बासु को इसकी सूचना दी।

डॉ. बासू ने आकर अपना बैग लिया और कृष्ण चंद की ईमानदारी से खुश होकर उसे 2100 रुपए इनाम स्वरूप देने चाहे। लेकिन कृष्णचंद ने इंकार कर दिया।

जहरीले केले

 
पानीपत. खरखौदा . बुधवार की रात्रि को जहरीले केले खाने से एक ही परिवार के चार सदस्य बेहोश हो गए। उन्हें सुबह खरखौदा के सामुदायिक स्वास्थ्य केंद्र में दाखिल कराया गया। जहां पर प्राथमिक उपचार के बाद उन्हें रोहतक पीजीआई रेफर कर दिया गया।

तेजपाल के परिजनों ने बताया कि यूपी निवासी उनका रिश्तेदार खरखौदा के वार्ड संख्या 9, महावीर कालोनी में आया था। वह अपने साथ करीब दो दर्जन केले लेकर आया था। रिश्तेदार तो वापस चला गया। लेकिन जब उनके परिवार के सभी सदस्यों ने रात्रि को केले खाए तो वे सुबह बिस्तर से उठ नहीं सके। पड़ोसियों ने आकर देखा तो परिवार के सभी सदस्य अचेत पड़े हुए थे।

इस पर सभी को बेहोशी के हालत में खरखौदा सीएचसी में दाखिल कराया गया। परिजनों ने बचे हुए केलों को भी चिकित्सकों को दिखाया। केले खाने से परिवार का मुखिया 38 वर्षीय तेजपाल, 35 वर्षीय उसकी पत्नी शिमला, 16 वर्षीय उसकी पुत्री पूनम व 14 वर्षीय उसकी बेटी मोनिका बेहोश हो गई थी।

जिनमें से मोनिका की हालत में सुधार है। जबकि बाकी तीनों की हालत अभी तक गंभीर बनी हुई थी। मामले की शिकायत पुलिस को दी गई है। चिकित्सकों ने परिजनों से पूछताछ की तो उन्होंने बताया कि चार में से तीन सदस्यों ने आलू- बैंगन की सब्जी भी खाई थी। इसलिए आशंका जताई जा रही है कि केलों में ही किसी तरह की मिलावट थी।

न्यूज चैनल दफ्तर में तोडफ़ोड़

पानीपत. जीटी रोड स्थित एक न्यूज चैनल के दफ्तर में कुछ लोगों ने तोडफ़ोड़ की और तीन मीडिया कर्मियों को पीटकर घायल कर दिया। आरोप है कि हमलावर तीन लैपटॉप, तीन कैमरे, दो मोबाइल और 4 हजार रुपए भी ले गए। वारदात का आरोप हजकां नेता संजय कादियान और उसके तीन साथियों पर लगाया है। वारदात करीब 3.30 बजे की है।

न्यूज चैनल के पानीपत प्रभारी कुलवंत सिंह ने बताया कि मंगलवार को पुलिस ने अलीपुरा के खेतों में चल रही तारकोल व काले तेल की पांच अवैध फैक्टरी पकड़ी थी। जिनमें से एक फैक्टरी हजकां जिलाध्यक्ष संजय कादियान की होने की बात कही जा रही थी। उन्होंने इस मामले को चैनल पर लगातार चला रखा है।

आरोप है कि संजय कादियान व उसके साथी अंजाम भुगतने की धमकी दे रहे थे। गुरुवार को वह कार्यालय से बाहर गया हुआ था। तभी संजय कादियान व कन्हैया अपने तीन साथियों समेत पिस्तौल व डंडे लेकर कार्यालय में पहुंचे तोड़फोड की। उन्होंने कैमरामैन प्रदीप, संदीप व कर्मचारी पवन को डंडों से पीटकर घायल कर दिया। कुलवंत सिंह का कहना है कि आरोपियों से उसे जान का खतरा है। पुलिस ने संजय कादियान, कन्हैया लाल और उनके दो साथियों पर लूट, मारपीट और शस्त्र अधिनियम के तहत केस दर्ज कर लिया है।

यूरोपीय बाज़ार में उठापटक जारी

यूरोपीय देशों के कर्ज़ संकट और यूरोपीय बैंकों की वित्तीय स्थिति को लेकर चिंता के बीच यूरोपीय बाज़ार में उठापटक जारी है.
बाज़ार खुले तो उछाल के साथ लेकिन जल्दी ही फिर गिरने लगे.
लंदन का फ़ुटसी सूचकांक, जर्मनी का डैक्स और फ़्रांस का काक शुरुआत में लगभग दो प्रतिशत की उछाल के साथ खुला.
लेकिन दोपहर के सत्र तक एक बार फिर बाज़ार में गिरावट दर्ज की गई.
इस बीच भारतीय शेयर बाज़ार में भी उठापटक जारी रही. सुबह की तुलना में दोपहर को बाज़ार सुधरा हुआ दिख रहा था लेकिन आख़िर में 71.11 अंक की गिरावट के साथ ही बंद हुआ.

यूरोपीय बाज़ार

दोपहर के सत्र तक भी हालांकि लंदन का फ़ुटसी और जर्मनी का डैक्स बुधवार की तुलना में कुछ बढ़त बनाए हुए थे लेकिन फ़्रांस का काक सूचकांक गिरावट दर्ज कर चुका था.
फ़्रांस के बैंकों के शेयरों ने अच्छी बढ़त दर्ज की थी और सोसिए जनरल के शेयरों ने आठ प्रतिशत की बढ़ोत्तरी दर्ज कर ली थी लेकिन लंच तक ये शेयर आठ प्रतिशत गिर गए.
फ़्रांस के बैंकों की वित्तीय स्थिति की चिंता की वजह से ही बुधवार को यूरोपीय शेयर बाज़ारों में भारी गिरावट आई थी.
ये अफ़वाह थी अमरीका के बाद अब फ़्रांस भी अपनी क्रेडिट रेटिंग में कटौती का सामना करने वाला है और उसकी क्रेडिट रेटिंग एएए में कटौती की जाने वाली है.
हालांकि सरकार और फ़्रांस के केंद्रीय बैंक दोनों ने ही इसका खंडन किया है.

एशियाई शेयर बाज़ार

गुरुवार को एशियाई शेयर बाज़ार के कारोबार में मिलाजुला माहौल देखने को मिला और निवेशकों पर यूरोपीय देशों के कर्ज़ संकट का डर का साया साफ़ नज़र आया.
हालांकि शुरुआती गिरावट के बाद जापान का नेक्कई 225 अंक ऊपर आया. शुरुआत में बाज़ार 1.8 प्रतिशत की गिरावट के साथ खुला था लेकिन बंद हुआ 0.63 प्रतिशत की गिरावट के साथ.
हॉन्गकॉन्ग का हैंग सेंग भी शुरुआती गिरावट के बाद कुछ सुधरा और एक प्रतिशत की गिरावट के साथ बंद हुआ.
दक्षिण कोरिया का कोस्पी और ऑस्ट्रेलिया का एएसएक्स भी शुरुआती गिरावट के बाद बाद में कुछ सुधार के साथ बंद हुए.
इससे पहले अमरीका में डाओ जोन्स 520.29 अंकों की गिरावट के साथ बंद हुआ था.

सोना महंगा, पर ख़रीदारों पर असर नहीं

सोने का दाम भले ही आसमान छू रहा हो, लेकिन ख़रीदार इस बेशक़ीमती धातु को ख़रीदने के लिए बाज़ारों की ओर खिंचे चले आ रहे हैं.
दिल्ली के करोल बाग़ में सुनार की ज़्यादातर दुकानों पर भीड़ देखने को मिली, जहां ख़रीदार अपनी बचत राशि को दिल खोल कर सोने पर लुटा रहे थे.
सोने के बढ़ते दामों से लोगों में भले ही ख़रीदारों में थोड़ी मायूसी भी छाई हो, लेकिन सुनारों की चांदी हो गई है.
लोग या तो निवेश के नज़रिए से सोने की ख़रीदारी कर रहे हैं या फिर इस डर से कि कहीं आने वाले दिनों में सोना और महंगा न हो जाए.
हम भले ही महंगाई की वजह से अपने राशन में कटौती कर सकते हैं, लेकिन जब बात सोने की आती है तो इसे ख़रीदने में हम पीछे नहीं हटते. पिछले पांच महीनों में सोना 19,000 से 26,000 के स्तर पर पहुंच गया है, लेकिन फिर भी सोने की ख़रीददारी मज़बूत है. ख़ासतौर पर सोना महिलाओं के दिल के बहुत क़रीब है, तो ऐस में कहां ख़रीददारी कम हो सकती है?
सुनार की दुकान पर आए एक ख़रीददार
मनदीप सिंह नाम के एक सुनार का कहना था कि सोने के दाम भले ही कितने भी बढ़ें, ख़रीदार इस धातु से ख़ुद को अलग नहीं कर पाता.
उन्होंने कहा, “सोने के दाम में बढ़त का हमारे व्यापार पर सकारात्मक असर पड़ा है क्योंकि लोगों का सोचना है कि इससे पहले सोने के दाम और बढ़ जाएं, उन्हें आज ही भविष्य के लिए ख़रीददारी कर लेनी चाहिए. जिस तरह से वैश्विक बाज़ारों में अफ़रा-तफ़री मची है, उसे देख कर तो लगता नहीं कि सोने का दाम नीचे गिरेगा. साथ ही इस धातु में ज़्यादा निवेश के कारण भी इसके दाम में बढ़ोतरी ही होगी.”
भारत में सोने का दाम रातों-रात तीन प्रतिशत बढ़ कर 26,198 रुपए प्रति दस ग्राम के रिकॉर्ड स्तर पर पहुंच गया है.
सोमवार को वैश्विक बाज़ारों में मची खलबली के बीच सोने का दाम 25,000 प्रति दस ग्राम पर पहुंच गया था.

'महिलाओं के दिल से जुड़ा'

कुछ लोग निवेश के लिए सोना ख़रीद रहे हैं, तो कुछ शादी-ब्याह के लिए.
सोना एक ऐसा धातु है जिसके बिना भारत में लगभग हर त्यौहार अधूरा सा है.
अगले महीने से शादियों का मौसम की शुरुआत होने वाली है और ऐसे में लोगों के पास सोना ख़रीदने के अलावा कोई चारा नहीं है. फिर चाहे दाम आसमान क्यों न छू रहे हों.
सोना ख़रीदने आई एक महिला ने कहा, “हालांकि मेरी बेटी की शादी नवंबर में है, लेकिन सोने की लगातार बढ़ती हुई क़ीमत को देखते हुए मैंने फ़ैसला किया कि मुझे आज ही ख़रीदारी कर लेनी चाहिए. क्या मालूम नवंबर तक ये धातु क्या रंग दिखाए.”
सोने का दाम भविष्य में बढ़ेगा ही बढ़ेगा. इसलिए बढ़ते दामों की वजह से मुझे लगा कि मुझे आज ही सोना ख़रीदना चाहिए, ताकि भविष्य में उसे बेच कर मैं अच्छा मुनाफ़ा कमा सकूं.
सोना ख़रीदने आई एक युवती
जहां कुछ लोगों को ‘मजबूरी’ में सोना ख़रीदना पड़ रहा है, तो वहीं कुछ लोगों की भविष्य में निवेश के नज़रिए से इस धातु में दिलचस्पी बन रही है.
सोने के बिस्कुट ख़रीदने आई एक युवती का कहना था, “सोने का दाम भविष्य में बढ़ेगा ही बढ़ेगा. इसलिए बढ़ते दामों की वजह से मुझे लगा कि मुझे आज ही सोना ख़रीदना चाहिए, ताकि भविष्य में उसे बेच कर मैं अच्छा मुनाफ़ा कमा सकूं.”
तो वहीं एक युवक ख़रीदार ने कहा कि भारतीय लोगों पर बढ़ते दामों का कोई असर नहीं पड़ेगा, “हम भले ही महंगाई की वजह से अपने राशन में कटौती कर सकते हैं, लेकिन जब बात सोने की आती है तो इसे ख़रीदने में हम पीछे नहीं हटते. पिछले पांच महीनों में सोना 19,000 से 26,000 के स्तर पर पहुंच गया है, लेकिन फिर भी सोने की ख़रीदारी मज़बूत है. ख़ासतौर पर सोना महिलाओं के दिल के बहुत क़रीब है, तो ऐस में कहां ख़रीदारी कम हो सकती है?”
ख़रीदारों की बात सुन कर इस बात की पुष्टि की जा सकती है कि भारतीय लोग विश्व में सोने के सबसे बड़े खरीदार हैं और सोना ख़रीदने में सबसे बड़े दिलदार भी.

अब भी मुन्नाभाई मैं ही हूं- संजय दत्त

संजय दत्त ने इन ख़बरों का खंडन किया है कि आमिर ख़ान अगले मुन्नाभाई बनने जा रहे हैं. संजय दत्त ने ज़ोर देकर कहा कि वो ही हैं असल मुन्नाभाई.
मुंबई में अपनी आने वाली फ़िल्म चतुर सिंह टू स्टार के प्रमोशन के मौक़े पर संजय दत्त ने कहा, "मैंने तो नहीं सुना है कि आमिर मुन्नाभाई बनने जा रहे हैं. अभी तक के हिसाब से तो इस सीरीज़ की अगली फ़िल्म भी मैं ही कर रहा हूं. अब भी मैं ही मुन्नाभाई हूं और अरशद वारसी ही सर्किट हैं."
दरअसल मीडिया में पिछले दिनों ख़बरें आ रही थीं कि निर्माता विधु विनोद चोपड़ा मुन्नाभाई सीरीज़ की तीसरी फ़िल्म में आमिर ख़ान को मुख्य किरदार मुन्नाभाई के लिए और शरमन जोशी को सर्किट के रोल के लिए लेना चाहते हैं.
इस सीरीज़ की पहली दो फ़िल्मों, मुन्नाभाई एमबीबीएस और लगे रहो मुन्नाभाई में संजय दत्त मुन्नाभाई बने थे और अरशद वारसी ने उनके दोस्त सर्किट का किरदार निभाया था.
मैंने तो नहीं सुना है कि आमिर मुन्नाभाई बनने जा रहे हैं. अभी तक के हिसाब से तो इस सीरीज़ की अगली फ़िल्म भी मैं ही कर रहा हूं. अब भी मैं ही मुन्नाभाई हूं और अरशद वारसी ही सर्किट हैं.
संजय दत्त, अभिनेता
दोनों ही फ़िल्में ज़बरदस्त कामयाब रहीं और मुन्नाभाई का किरदार लोगों के बीच ख़ासा मशहूर हो गया. यहां तक कि संजय दत्त को उनके प्रशंसक मुन्नाभाई के नाम से ही बुलाने लगे.
संजय दत्त कहते हैं, "मुन्नाभाई को लोगों का भरपूर प्यार मिला. मैं भाग्यशाली हूं कि मुझे इस किरदार को निभाने का मौक़ा मिला."
बीते दिनों संजय दत्त और सलमान ख़ान के झगड़े की ख़बरों ने भी ख़ूब सुर्खियां बटोरीं. लेकिन संजय ने इन ख़बरों का भी ज़ोरदार खंडन किया.
उन्होंने कहा, "सलमान मेरा छोटा भाई है. मैं उससे कभी झगड़ा नहीं कर सकता. वो मेरे घर पार्टी में आया. हम दोनों दोस्त कुछ बात करने मेरे गैराज में गए. तो मीडिया ने बेकार में हमारे झगड़े की बातें उछाल दीं."
संजय दत्त ने ये भी बताया कि उनकी बहनों के साथ उनके अब भी बहुत बेहतर संबंध हैं और वो रक्षाबंधन का त्यौहार साथ मनाने वाले हैं.

सिगरेट औरतों के लिए ज़्यादा घातक

एक शोध से पता चला है कि धूम्रपान से महिलाओं में पुरुषों की तुलना में दिल का दौरा पड़ने की संभावना काफ़ी बढ़ जाती है.यह शोध अमरीका स्थित वैज्ञानिकों ने सिंगापुर, नॉर्वे और तुर्की जैसे कई देशों में किया है.
लॉन्सेट पत्रिका में प्रकाशित लेख में इसका कोई कारण नहीं बताया गया है लेकिन ये संकेत दिए गए हैं कि महिलाएं सिगरेट से निकलने वाले विषाक्त रसायनों को पुरुषों की तुलना में ज़्यादा आत्मसात करती हैं.
यही कारण है कि सिगरेट पीने वाली महिलाओं में पुरुषों का तुलना में फेफड़े का कैंसर होने की संभावना भी अधिक होती है.
बहुत पहले से ही यह स्पष्ट हो चुका है कि धूम्रपान से दिल का दौरा पड़ने का ख़तरा बढ़ जाता है. लोकिन करीब पच्चीस लाख लोगों पर शोध करने के बाद ये बात पहली बार सामने आई है कि महिलाओं पर इसका असर पुरुषों की तुलना में ज़्यादा पड़ता है.
शोध के अनुसार धूम्रपान से महिलाओं को पुरुषों की तुलना में दिल की बीमारी होने की संभावना पच्चीस फ़ीसदी ज़्यादा होती है.
अब शायद तंबाकू नियंत्रण कार्यक्रमों को महिलाओं पर विशेष ध्यान देना चाहिए ख़ासकर उन देशों में जहाँ युवा महिलाओं में धूम्रपान करने का चलन बढ़ रहा है.

स्वतंत्रता दिवस

आजादी के बाद से हमारे देश में राजनीतिक पार्टियों, राजनेताओं व नौकरशाहों के चरित्र और नैतिक मूल्यों में लगातार गिरावट ने दर्शाया है कि धृतराष्ट्र का कुर्सी प्रेम किन-किन विचित्र खेलों को जन्म देता है। चुनाव लड़ना अब हिंसा, धन और बाहुबल का खेल होकर रह गया है।


हमारी लोकतांत्रिक संस्थाओं में अपराधियों की भरमार होती जा रही है। क्या यही बापू के सपनों का भारत है? मंत्री, अफसर, धन्नासेठ सभी बहुराष्ट्रीय कंपनियों के हाथों की कठपुतली बने हुए हैं। कुल मिलाकर देश का भविष्य इन्हीं के हाथों में कैद होता जा रहा है।

'तुम मुझे खून दो, मैं तुम्हें आजादी दूंगा', के नारे, और संकल्प को साकार करने वाले नेताजी सुभाषचंद्र बोस जैसा दूसरा नेता आजादी के बाद देश में न होना दुर्भाग्य की बात है। अपने अतीत से सबक नहीं लेने वाले देशों का इतिहास ही नहीं, भूगोल भी बदल जाता है। आज देश में धीरे-धीरे ही सही आजादी के पहले की स्थिति येन-केन-प्रकारेण निर्मित होती दिख रही है।

लेकिन, सत्ता में काबिज राजनेताओं की आंखों पर राजनीतिक स्वार्थ की पट्टी बंधी हुई है। वे तो बस अपना घर भरने और कुर्सी बचाने में ही अपनी शक्ति लगा रहे हैं। वहीं, विपक्षी राजनेताओं का एक सूत्री कार्यक्रम है कि उन्हें सत्ता कैसे हासिल हो?

इन दो पाटों के बीच में आम जनता पिस रही है और मां भारती खून के आंसू बहा रही है। वो बिलख-बिलख कर कह रही हैं कि कहां हैं मेरे प्यारे महात्मा गांधी, बच्चों के चाचा जवाहरलाल नेहरू, आजादी के दीवाने सुभाषचंद्र बोस, चंद्रशेखर आजाद, भगतसिंह ....? जिन्होंने मुझे अंग्रेजों की कैद से तो आजादी दिला दी, लेकिन अपनों के हाथों घुट-घुटकर जीने को छोड़ दिया।

अरे, मेरे बच्चों कोई तो मेरे इन लालों के आदर्शों पर चलो, उनके स्वप्नों को साकार करो। जीवनभर उनके बताए मार्गों पर नहीं चल सकते तो दो-चार कदम ही बढ़ो। इतने में ही मेरा मान-सम्मान बढ़ सकेगा और मेरे ऊपर आए नक्सलवाद, आतंकवाद, दंगा, महंगाई, बेरोजगारी, गरीबी, अशिक्षा, धर्म, भाषा व क्षेत्रवाद की मुसीबतें टल जाएंगी।

देशवासियों के सामने एक प्रश्न यह भी है कि आखिर हम क्यों पी रहे हैं, पानी खरीदकर? प्रकृति प्रदत्त हवा, पानी पर तो सभी का समान अधिकार है। फिर कौन लोग हैं जो पानी बेच रहे हैं? लोग आखिर क्यों खरीद रहे हैं,पानी ? सरकार क्या कर रही हैं। जीने के लिए दो जून की रोटी की जरूरत तो सभी को है, लिहाजा कुछ लोग गरीबी, भुखमरी, तंगहाली के चलते तो कुछ पैसे कमाने की खातिर खून बेचने, खरीदने का धंधा कर रहे हैं।

अब पानी का व्यवसाय फल-फूल रहा है। ऐसी स्थिति में वह दिन दूर नहीं जब सांस लेने के लिए हवा खरीदनी पड़ेगी? आखिर लोग विरोध क्यों नहीं करते?

देश में प्रजातंत्र है। सरकार जनता की है। जनता के लिए है, और जनता ने ही चुनी है। तो फिर ऐसी सरकार की जरूरत क्यों है, जिनके राज में पानी खरीद कर पीना पड़े, शुद्ध हवा भी न मिले, दो जून की रोटी के लिए खून बेचना पड़े? अगर समय रहते केंद्र और राज्य सरकारों की आंखें नहीं खोली गईं तो वह दिन दूर नहीं जब सांस लेने के लिए भी अनुमति लेनी पड़ेगी?

अब देश में ऐसी कौन सी चीज बची है जो नहीं बिकतीं? स्वयंभू धर्माचारी, राजनेता, अधिकारी, कर्मचारी, व्यापारी, उद्योगपति बिके हुए हैं, पुलिस व कथित तौर पर न्यायाधीश पर भी बिकने का आरोप है।

ऐसे हालात में क्या देश का कोई नागरिक गर्व से यह कह सकता है कि वह देवताओं की भूमि भारतवर्ष में रहता है, जहां धर्म, कर्म, नैतिकता ही प्रधान रही क्या यह बलिदानी भगतसिंह, चंद्रशेखर आजाद, सुभाषचंद्र बोस जैसे शूरवीर की भूमि है, महात्मा गांधी, महावीर, नानक, गौतम बुद्ध, कबीर जैसे संत-महात्माओं की कर्मभूमि है?

जरा सोचिए! कहते हैं एक व्यक्ति से बड़ा परिवार, परिवार से ब़ड़ा समाज और समाज से बड़ा देश होता है। विपत्ति के समय परिवार के लिए खुद को, समाज के लिए परिवार को और देश के लिए समाज को कुर्बान कर देना चाहिए। लेकिन, आज देश में ऐसा होते कहीं दिखाई नहीं देता? उल्टे ऐसे लोग हैं जो स्वयं को परिवार, समाज और देश से बड़ा समझने लगे हैं।

यदि ऐसा नहीं होता तो कोई राजनेता भ्रष्ट न होता, अधिकारी-कर्मचारी ईमानदार व कर्तव्यपरायण होते, व्यापारी, उद्योगपति देश की संपत्ति नहीं लूटते और जनता सरकारी संपत्ति की समुचित सुरक्षा करते, बात-बेबात पर आगजनी, तोड़फोड़ कभी न करते।

विकास के नारे लगाने वाले लोग क्या पैसे की चकाचौंध में अंधे हो गए हैं? जिन्हें लाखों भूखे, नंगे, अशिक्षित, भिखारी, गंदी बस्तियों व झोपड़पट्टियों में रहने वाले लोग, जंगलों में निवासरत आदिवासियों की दशा दिखाई नहीं देती। क्या ये भारत के वासी नहीं है?

समाज सेवा का क्षेत्र हो या धर्म-अध्यात्म अथवा राजनीति का, चारों ओर अवसरवादी, सत्तालोलुप, आसुरी वृत्ति के लोग ही दिखाई देते हैं। शिक्षा और चिकित्सा के क्षेत्र, जहां कभी सेवा के उच्चतम आदर्शों का पालन होता था, आज व्यावसायिक प्रतिस्पर्धा के केंद्र बन गए हैं। व्यापार में तो सर्वत्र कालाबाजारी, चोर बाजारी, बेईमानी, मिलावट, टैक्सचोरी आदि ही सफलता के मूलमंत्र समझे जाते हैं। त्याग, बलिदान, शिष्टता, शालीनता, उदारता, ईमानदारी, श्रमशक्ति का सर्वत्र उपहास उड़ाया जाता है। गरीबी और महंगाई आज देश की विकट समस्या है।

गरीबी का अर्थ समाज की क्षमताओं और विचारों के अनुरूप जीवनस्तर और जीवन-प्रणाली से वंचित होना है। गरीबी निवारण का अर्थ है लोगों को ऐसा जीवनस्तर और जीवन-प्रणाली प्रदान करना जिससे वे सामाजिक, राजनीतिक व सांस्कृतिक जीवन में संयुक्त रूप से सहभागिता प्राप्त कर सकें।

क्या यह सही नहीं है कि आज देश में आजादी की क्रांति की भांति ही एक और बगावत की सख्त जरूरत है। ताकि, भ्रष्टाचार, बेईमानी, बेरोजगारी, हिंसा, अशिक्षा, असमानता, गरीबी, महंगाई, आतंकवाद, नक्सलवाद का अंत हो सके। भारत माता की इस पीड़ा को कौन समझेगा?

Wednesday, 10 August 2011

सेट के चारों ओर पानी

मुंबई में इतनी बारिश हुई कि जी टीवी पर प्रसारित होने वाले धारावाहिक ‘संस्कार लक्ष्मी’ के सेट के चारों ओर पानी भर गया। इस शो में लक्ष्मी की भूमिका निभाने वाली विभा आनंद जब सेट पर पहुंची तो पानी को हटाया जा रहा था।

विभा के पास खाली समय था और इसी दौरान उन्हें घूमने की इच्छा हुई। अपने मेकअप मैन मनोज को उन्होंने बुलाया और कहा ‘मैं बाइक पर तुम्हारे पीछे बैठूंगी। यदि जमीन पर पैर टिकाए बिना डूबे सेट का तुम पूरा चक्कर लगाओगे तो सेट पर मौजूद सभी लोगों को गरमागरम भजिए और वड़ा पाव खिलाऊंगी।‘

हाथ मिलाए गए और शर्त पक्की हो गई। मनोज ने विभा को बैठाया और सेट का चक्कर लगाने लगा। घुटने-घुटने पानी था, लेकिन मुश्किलों से जूझते हुए मनोज ने बिना पैर जमीन पर टिकाए सेट का पूरा चक्कर लगा दिया।

विभा शर्त हार गई, लेकिन इस सवारी से वे इतनी रोमांचित हुई कि उन्होंने खुशी-खुशी पकौड़े और वड़े पाव का आर्डर दे डाला।

रक्षाबंधन का पर्व

सावन के रिमझिम मौसम के साथ ही भारत में त्योहारों की रंग-बिरंगी श्रृंखला आरंभ हो जाती है। यह त्योहार रिश्तों की खूबसूरती को बनाए रखने का बहाना होते हैं। यूं तो हर रिश्ते की अपनी एक महकती पहचान होती है। भाई-बहन का रिश्ता एक भावभीना अहसास जगाता है। रक्षाबंधन का पर्व इसी रेशमी रिश्ते की पवित्रता का प्रतीक है।
यह रिश्ता जीवन के विविध उतार-चढ़ाव से गुजरते हुए भी एक गहरे, बहुत गहरे अहसास के साथ हमेशा ताजातरीन और जीवंत बना रहता है। मन के किसी कच्चे कोने में बचपन से लेकर युवा होने तक की, स्कूल से लेकर बहन के बिदा होने तक की और एक-दूजे से लड़ने से लेकर एक-दूजे के लिए लड़ने तक की असंख्य स्मृतियाँ परत-दर-परत रखी होती है। बस, भाई-बहन के फुरसत में मिलने भर की देर है, यादों के शीतल छींटे पड़ते ही अतीत के केसरिया पन्नों से चंदन-बयार उठने लगती है। एक ऐसी सौंधी-सुगंधित सुवास जो मन के साथ-साथ पोर-पोर महका देती है।

सुहाना बचपन : सहज मनोविज्ञान
भाई का नन्हा-सा दिल पहली बार जब छोटी-सी गुलाबी-गुलाबी बहन को देखता है तब अनजानी, अजीब-सी अनुभूतियों से भर उठता है। थोड़ी-सी जिम्मेदारी, थोड़ी-सी चिंता, थोड़ा-सा प्यार, थोड़ी-सी खुशी, थोड़ी-सी जलन, थोड़ा-सा अधिकार ऐसी ही मिलीजुली भावनाओं के साथ भाई-बहन का बचपन गुलजार होता है।

मनोविज्ञान कहता है, अक्सर बड़े भाई-बहन अपने नवागत भाई या बहन को लेकर असुरक्षित महसूस करते हैं। वह मन ही मन खुद को उपेक्षित और अवांछित भी समझ सकते हैं। यहां परिवार और परवरिश दोनों की अहम भूमिका होती है। घर के बड़े हंसी-मजाक में भी कभी बच्चे को यह अहसास ना कराएं कि नए बच्चे के आगमन से उसकी अहमियत कम हो जाएगी। इस उम्र में बैठा उनका यह डर ग्रंथि बनकर रिश्तों की डोर कमजोर कर सकता है। भाई और बहन के बीच स्वस्थ रिश्ते की बुनियाद रखने की जिम्मेदारी माता-पिता की होती है।

खासकर भाई अगर बड़ा है तो उसे नई बहन के प्रति संवेदनशील बनाने के लिए शिक्षा दें कि यह नन्ही जान उसके साथ खेलने और पढ़ने के लिए लाई गई है। उसके अकेलेपन को दूर करने के लिए उसे भेजा गया है। जैसे-जैसे वह बड़ी होगी उसकी खुशियों का सबब बनेगी।

अगर बहन बड़ी है तो उसे यह अहसास दिलाएं कि छोटा भाई आने से उसको मिलने वाले प्यार में कमी नहीं होगी ना व्यवहार में बदलाव आएगा। लड़कियां यूं भी मानसिक रूप से इस मामले में मजबूत होती है उन्हें बस इतना भर बताया जाना चाहिए कि इस छोटे प्राणी को अभी ज्यादा देखभाल की जरूरत है।

भाई-बहन के रिश्ते के मनोविज्ञान का बस इतना ही सच है कि उन्हें स्वस्थ वातावरण में बिना किसी भेदभाव के खिलने-खेलने-पनपने का अवसर दीजिए। प्यार की सौगात से तो ईश्वर ने स्वयं उन्हें नवाजा है आप उन्हें उस प्यार को महकाने की खुशनुमा भावनात्मक बगिया दीजिए।

नटखट बचपन : नन्ही शैतानियां
याद कीजिए अपने बचपन की शरारतें। क्या भाई-बहन के बिना वे इतनी मोहक और मासूम हो सकती थी? नहीं ना? ठीक इसी तरह आज के बचपन को भी खुलकर जीने दीजिए। बचपन की मयूरपंखी स्मृतियां उनके भविष्य की भी मुस्कान बने इसलिए बहुत जरूरी है कि बड़ा भाई अपनी छुटकी बहन के उल्टे-सीधे नाम रखें, बहुत जरूरी है कि दोनों साथ-साथ उछले-कूदे, गिरे-पड़े, धमाधम धिंगामुश्ती करें। जरूरी है कि पेड़ पर चढ़े और मिट्टी में सने, जरूरी है कि एक दूसरे के खिलौनों को तोड़े-छुपाए।

सोचिए अगर आपने यह सब उन्हें नहीं करने दिया तो कल बड़े होकर वे क्या याद करेंगे? यह कि मेरा बस्ता तुम्हारे बस्ते से ज्यादा भारी था, या यह कि मैंने तुमसे ज्यादा कोचिंग ली, या यह कि कंप्यूटर का माउस तुमने तोड़ा था और मार मुझे पड़ी थ‍ी। इन यादों में बचपन तो होगा लेकिन टूटते-बिखरते अनारों से ठहाके नहीं होंगे, बेसाख्ता फूट पड़ती हंसी के फव्वारे नहीं होंगे, मीठी चुटकियां नहीं होगी, चटपटी सुर्खियां नहीं होंगी।

इन बातों में वह बचपन होगा जो नटखट लम्हों और भोली नादानियों से जुदा होगा। इसलिए सभी नन्हे भाई-बहन को हर पल साथ में ही तीखी-मीठी नोकझोंक के साथ गुजारने दीजिए। उनके रिश्तों के अमलतास हमेशा खिले रहेंगे।

त्योहार के बहाने : रिश्ते नए-पुराने
आज सारे त्योहार तकनीक और आधुनिकता की भेंट चढ़ गए हैं। रक्षाबंधन का त्योहार भी अछूता नहीं रहा। लेकिन इसके बावजूद सबसे बड़ी बात यह है कि रिश्तों की गर्माहट, आंच, तपन या उष्मा कुछ भी कह लीजिए, वह बरकरार है। आज भी भाई का मन अपनी बहन के लिए उतना ही पिघलता है, आज भी बहन का प्यार भाई के लिए उतना ही मचलता है। यह बात और है कि तरीके बदल गए हैं, भावाभिव्यक्तियां बदल गई हैं, अंदाज बदल गए हैं मगर अहसास वही है।

चाहे इंटरनेट पर अदृश्य राखी पहुंचे या मोबाइल पर कोई भावुक-सा मैसेज चमके, चाहे हाथों में 'प्यारे भैया' का टैग लगी राखी हो या लिफाफे में पसीने की कमाई से भीगा शगुन हो। यह प्यारा रिश्ता अपनी गहराई और गंभीरता नहीं भूल सकता।

भावुकता की लहर में यही पंक्तियां उभरती है :

बहनें चिड़‍िया धूप की, दूर गगन से आए
हर आंगन मेहमान-सी, पकड़ो तो उड़ जाए।
 
 

Tuesday, 9 August 2011

जॉन अब्राहम को टैटू से नफरत है

जॉन अब्राहम को टैटू से नफरत है क्योंकि उनका मानना है कि इससे न केवल शरीर को दर्द से गुजरना पड़ता है बल्कि यह शरीर को नुकसान भी पहुंचाता है। भले ही उनकी शानदार बॉडी हो, लेकिन उस पर टैटू बनवाने के वे सख्त खिलाफ हैं।

जॉन का कहना है कि वे अपने शरीर से खिलवाड़ करना पसंद नहीं करते हैं। वे शरीर को एक मंदिर की तरह मानते हैं और उसी की तरह उसकी देखभाल करते हैं। उनकी नजर में स्वास्थ्य से बढ़कर कुछ नहीं है।

जॉन के अनुसार सही मात्रा में खाना चाहिए और उन्हीं चीजों को खाने में महत्व देना चाहिए जिससे शरीर को नुकसान ना पहुंचे। साथ ही रोजाना वर्कआउट या योगा करना चाहिए।

जॉन कभी भी वर्कआउट मिस नहीं करते हैं भले ही रात में सोने में उन्हें कितनी ही देर क्यों ना हो जाए। वे पार्टी पर्सन लगते हैं, लेकिन पार्टियों में जाना उन्हें पसंद नहीं है। कभी-कभी खास दोस्तों के साथ ही उन्हें पार्टी करना पसंद है।
 

माह-ए-रमजान

माह-ए-रमजान में अल्लाह के हुक्म का ज्यादा सख्ती से पालन किया जाता है। हदीस शरीफ में आया है कि 'हुजूर (सल्ल) ने फरमाया कि लोग भलाई पर रहेंगे, जब तक कि वह अफ्तार करने में जल्दी करते रहेंगे।'

रोजे का मकसद आदमी को अल्लाह की मर्जी का पालन करने वाला बनाना है, आदमी को तकलीफ देना नहीं। जब उसका हुक्म था खाना-पीना छोड़ो तो छोड़ दिया। अफ्तार के वक्त हुक्म है कि खाना-पीना शुरू कर दो फिर देर करने का मतलब यह है कि हुक्म को मानने में आनाकानी हो रही है। इसलिए फौरन्‌ खाना-पीना शुरू करके अल्लाह को खुश करके रोजे की रूह तक पहुंच सकते हैं।

सारी बात का मकसद यह है कि अपनी मर्जी न चलाकर अपने अल्लाह की मर्जी अपने ऊपर चलने देना चाहिए।

 
 
आदमी के दिल में यह बात आ सकती है कि अधिक देर तक खाना-पीना छोड़ने से ज्यादा सवाब मिलेगा, मगर यहां बताया जा रहा है कि जल्दी अफ्तार करने में ही भलाई है। देर से अफ्तार करने से तो उल्टी अल्लाह की नाराजगी है।

रमजान के तीसों दिन अल्लाह की मर्जी के मुताबिक अपने आप को ढालने की ट्रेनिंग से ही इंसान इस काबिल होता है कि अपने मन पर कंट्रोल करके अपने हर काम को अल्लाह की मर्जी के मुताबिक अंजाम दे।