युवा लोगों के मुकबाले बुजुर्ग लोगों के लिए झूठ बोलना मुश्किल भरा काम होता है और हां, वे झूठ जल्दी से पकड़ भी नहीं पाते। हाल ही में हुए एक अध्ययन में यह दावा किया गया है।
ओटागो विश्वविद्यालय के वैज्ञानिकों ने इस बाबत अध्ययन किया। उन्होंने धोखे पर युवा और बुजुर्ग लोगों के कौशल को जांचा।
‘साइकोलॉजी एंड एजिंग’ मैग्जीन में प्रकाशित रिपोर्ट के मुताबिक, अध्ययन के लिए 60 लोगों को लिया गया। उन्हें विभिन्न मुद्दों पर 20 लोगों की वास्तविक राय और झूठी राय की वीडियो क्लिंपिंग दिखाई गई।
समूह में 10 की आयु तीस साल या उससे कम थी और 10 व्यक्तियों की आयु 60 साल या उससे ज्यादा थी। सब को दो-दो क्लिप दिखाए। एक सच बोलता और दूसरा झूठ बोलता।
अनुसंशान के अगुवा प्रो. जैमिन हल्बरस्टाड ने बताया कि अध्ययन में पाया गया कि जब बुजुर्ग लोगों ने झूठ बोला तो सभी के लिए उसे पकड़ना आसान रहा।
प्रो. हल्बरस्टेड ने कहा कि ऐसा हो सकता है कि बुजुर्ग व्यक्तियों में सफलतापूर्वक झूठ बोल पाने के लिए जरूरी मानसिक क्षमता उम्र के साथ कम होती जाती हो। वैज्ञानिकों का कहना है कि झूठ के लिए याददाश्त और सामाजिक समझ की जरूरत होती है।
उन्होंने कहा कि अपने अध्ययन में हमनें यह भी पाया कि सच और झूठ के बीच भेद कर पाने में भी बुजुर्ग प्रतिभागी युवाओं की माफिक नहीं थे।
वैज्ञानिक ने कहा कि गलती पकड़ पाने में नाकाम रहने की बुजुर्गों को लेकर हुए हमारे अध्ययन और उनके बहुत लंबे समय तक बोलते रहने और मुद्दों से भटक जाने को फिर से अध्ययन की गई परिघटना में खराब प्रदर्शन से जुड़ा पाया गया।
ओटागो विश्वविद्यालय के वैज्ञानिकों ने इस बाबत अध्ययन किया। उन्होंने धोखे पर युवा और बुजुर्ग लोगों के कौशल को जांचा।
‘साइकोलॉजी एंड एजिंग’ मैग्जीन में प्रकाशित रिपोर्ट के मुताबिक, अध्ययन के लिए 60 लोगों को लिया गया। उन्हें विभिन्न मुद्दों पर 20 लोगों की वास्तविक राय और झूठी राय की वीडियो क्लिंपिंग दिखाई गई।
समूह में 10 की आयु तीस साल या उससे कम थी और 10 व्यक्तियों की आयु 60 साल या उससे ज्यादा थी। सब को दो-दो क्लिप दिखाए। एक सच बोलता और दूसरा झूठ बोलता।
अनुसंशान के अगुवा प्रो. जैमिन हल्बरस्टाड ने बताया कि अध्ययन में पाया गया कि जब बुजुर्ग लोगों ने झूठ बोला तो सभी के लिए उसे पकड़ना आसान रहा।
प्रो. हल्बरस्टेड ने कहा कि ऐसा हो सकता है कि बुजुर्ग व्यक्तियों में सफलतापूर्वक झूठ बोल पाने के लिए जरूरी मानसिक क्षमता उम्र के साथ कम होती जाती हो। वैज्ञानिकों का कहना है कि झूठ के लिए याददाश्त और सामाजिक समझ की जरूरत होती है।
उन्होंने कहा कि अपने अध्ययन में हमनें यह भी पाया कि सच और झूठ के बीच भेद कर पाने में भी बुजुर्ग प्रतिभागी युवाओं की माफिक नहीं थे।
वैज्ञानिक ने कहा कि गलती पकड़ पाने में नाकाम रहने की बुजुर्गों को लेकर हुए हमारे अध्ययन और उनके बहुत लंबे समय तक बोलते रहने और मुद्दों से भटक जाने को फिर से अध्ययन की गई परिघटना में खराब प्रदर्शन से जुड़ा पाया गया।
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